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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ ३६९ में अक्षय तृतीया के दिन वालकेश्वर में पारणा किया । वर्षीतप के अंत में लगातार ३३ उपवास किये थे । अब वे मासक्षमण के पारणे मासक्षमण करने के मनोरथ कर रहे हैं । इस पंचमकाल में भी ऐसे महातपस्वीरत्नों से श्री जिनशासन शोभायमान है । धन्य तपस्वी ! धन्य जिनशासन ! १५८ सपरिवार धर्मरंग से रंगे हा डोक्टर प्रविणभाई महेता - मूलतः सौराष्ट्र में जामकंडोरणा गाँव के निवासी किन्तु वर्तमान में राजकोट की सरकारी अस्पताल में मेडीकल ओफिसर के रूपमें कार्य करते हुए डॉ. प्रविणभाई हिंमतलाल महेता (उ.व. ५०) M.B.B.S. सपरिवार धर्मरंग से पूरे रंगे हुए हैं । डो. प्रवीणभाई एवं उनकी धर्मपत्नी डो. ज्योतिबहेन महेता, सुपुत्री निशा (उव. २०) एवं सुपुत्र समीर (उ.व. ११) सभीने पंचप्रतिक्रमण, जीव विचार, नततत्त्व आदिका अध्ययन किया हुआ है । न केवल धार्मिक अध्ययन ही किया है, किन्तु सम्यकज्ञान को सम्यकक्रिया के रूप में भी इन्होंने परिणत किया है । घर के चारों सभ्य शाम को चौविहार करते हैं !... 'सुबहशाम प्रतिक्रमण, नवकारसी-चौविहार, भक्तामर स्तोत्र पाठ, जिनपूजा इत्यादि आराधनाएँ इनकी प्रतिदिवसीय दिनचर्या में शामिल हैं । शामको ६ बजे उनका रसोईगृह बंद हो जाता है । अर्थात् घर के सभी सदस्य हमेशा रात्रिभोजन का त्याग करते हैं । विशेष उल्लेखनीय एवं अनुमोदनीय बात यह है कि डॉ. प्रविणभाई महेता श्री सिद्धचक्र-भक्तामर-शांतिस्नात्र-१८ अभिषेक-१०८ पार्श्व-पद्मावतीकल्याणमंदिर-नंद्यावर्त-बीस स्थानक संतिकरं आदि सभी महापूजन एवं प्रतिष्ठा आदि के विधि-विधान भी अच्छी तरह से जानते हैं एवं राजकोट के आसपास के क्षेत्रों में भी अपने खर्च से सपरिवार जाकर उपर्युक्त पूजनादि धर्मानुष्ठान बिना मूल्य से, भक्ति के रूपमें करवाते हैं । प्रत्येक महापूजनों के मंडल का आलेखन भी उनके सुपुत्र एवं सुपुत्री स्वयं बहुरत्ना वसुंधरा - २-24
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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