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________________ ३३८ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ भोजन करता था । वह प्रतिदिन अत्यन्त निर्मल चित्त से ध्यानस्थ होकर पूजा करता था । मुनि श्री हंसविजयजी का निर्णय मुनि श्री हंसविजयजी की राय थी कि बालक को 'जाति-स्मरण' उस समय हुआ जब मैने बालक को गोद में लिया था और उसे सिद्धाचलजी का भजन सुनाया था, और उसकी स्मृति तब जागृत हुई जब उसने वालकेश्वर मन्दिर की प्रतिमा के दर्शन किये । मुनि श्री कपूरविजयजी का निर्णय मुनि श्री कपूरविजयजी ने भी कहा कि बालक को जन्म के १० वे दिन ही 'जाति-स्मरण' हो गया था । जब उसे रोते समय सिद्धचल का भजन सुनाया गया । मात्र १० दिन का होने के कारण उस समय वह अपने विचार प्रकट नहीं कर सका था किन्तु जब वालकेश्वर के मन्दिर की मूर्ति में उसने आदीश्वर भगवान् की पूर्व जन्म से समानता देखी तो इसे अपने उद्गार व्यक्त करने का सु-अवसर मिल गया । ___ मुनि श्री मोहनविजयजी की जाँच और निर्णय मुनि श्री मोहनविजयजी ने बालक की बहुत गहराई से इस प्रकार जाँच की : प्रश्न -- तुम अपने पूर्वजन्म में क्या थे ? उत्तर - मैं तोता था। प्रश्न - उसके पहले के जन्म में तुम क्या थे ? उतर - मैं नहीं जानता। प्रश्न - तुम्हारे तोते के जन्म में कोई तुम्हारा साथी था क्या ? उत्तर - हाँ, एक भाई था । प्रश्न - वह भाई अब कहाँ है ? उत्तर - मैं नहीं जानता । प्रश्न - क्या वह तुम्हारे बाद जीवित रहा ? उत्तर - हाँ । प्रश्न - तुम तोते के जन्म में क्या करते थे ? उत्तर - मैं आदीश्वर भगवान् की पूजा करता था ।
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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