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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ ____३३५ मुख्य मन्दिर में बालक के पूजाभाव मुख्य मंदिर के चौक में घुसने के बाद जब सीढ़ियाँ चढकर हम ऊपरके चौक में पहुँचे तो बालक ने तुरन्त अत्यन्त उत्साह के साथ 'मूलनायक' की ओर संकेत करके कहा कि इन्हीं आदीश्वर भगवान की उसने पूर्वजन्म में पूजा की थी। मंदिर के मुख्य मण्डप में पहुँचकर उसे बहुत प्रसन्नता हुई । हम लोगों ने पूजा की, उसके बाद बालक मुर्तिवत् 'कायोत्सर्ग' ध्यान में खड़ा हो गया । उसकी खुली हुई आँखें बिना पलक झपके आदीश्वर भगवान पर स्थिर थीं । वह इस ध्यान मुद्रामें अपने आपको भूल गया । मंदिर में जो कुछ हो रहा था उसे भी भूल गया, सैंकड़ों यात्रियों के शोर-शराबे और पूजा-संगीत के गुंजन को लगभग आधे घंटे तक वह भुलाये रहा । अनेक साधु-साध्वियाँ, गृहस्थ स्त्री-पुरष इस छोटे बालक के दर्शन और ध्यान को देखकर चकित हो गये । लगभग आधे घंटे तक के अनवरत मुग्ध ध्यान के पश्चात् मैंने उसके कंधे थपथपाये तब वह चौंक कर होश में आया । ध्यान में जो स्वर्गीय आनन्द उसे प्राप्त हुआ, उसका वर्णन करना उसके सामर्थ्य के बाहर था । शांत-मूर्ति मुनि कपूरविजयजी बालक के पास बैठे हुए बराबर उसकी तरफ देख रहे थे। उन्होंने बालक की उच्च ध्यानावस्था पर अनावश्यक विघ्न डालने के मेरे कार्य को ठीक नहीं माना । संगमरमर का छोटा हाथी ४-५ पुजारियों में से एक बूढ़े चौकीदार को बालक पहचान गया और उसकी तरफ इशारा करके बोला कि “यही सदा केसर की प्याली इस छोटे से संगमरमर के हाथी पर रखता था । 'यहाँ से वह घुटी हुई केसर मैं अपने पंजों में उठाता था और आदीश्वर भगवान की पूजा करता था ।" बालक उस छोटे हाथी के पास हमें ले गया जो बड़े हाथी के दाहिनी तरफ था, और इसलिए जो यात्री बाईं तरफ पूजा के लिए बैठे थे उनकी निगाहों से छिपा रहता था । मैंने भी पहले इस हाथी को नहीं देखा था ।
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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