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________________ 333 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ तीन मील के बजाय तीन सीढ़ियाँ जब हम लोग प्रातःकाल ४ बजे यात्रा के लिए उठे तो बालक पहले से ही जाग रहा था । तलहटी में पूजा-प्रार्थना के पश्चात् कमजोरी के कारण मैंने पहाड़ पर आने-जाने के लिए 'डोली' किराये पर कर ली थी । मैं बच्चे को अपने साथ डोली में बैठाकर ले जाना चाहता था । उसने मेरे साथ डोली में बैठने से इन्कार कर दिया और पर्वत शिखर की तरफ निगाह फैलाते हुए कहा, "आप यहाँ से चोटी तक कितनी दूरी समझते हैं ?" मैंने कहा, "लगगभग तीन मील ।" उसने प्रफुल्लता से कहा - "यह तो केवल सीढियों की तीन कतारें ही हैं, तीन मील नहीं । मैं पहाड़ पर पैदल जाउँगा। आप पैदल चलें ।" ऐसा कह कर बिना मेरा इन्तजार किये मुझे पीछे छोड़कर उसने मेरे भाई की ऊँगली पकड़ ली ओर खुशी-खुशी पहाड़ की ओर पैदल चल पड़ा । बिना रुके चढाई मेरे भाईने मुझे बताया कि पूरे रास्ते बालक सम्मोहन जैसी अवस्था में पर्वत शिखर की ओर तेजी से बढ़ता गया । उसे ऊबड़-खाबड़ जमीन का कोई ध्यान ही नहीं था । आमतौर पर छोटी उम्र के बालक उस मौके के लिए किराये पर तय किये हुए कुलियों के कंधों पर ले जाये जाते हैं । कुली मेरे भाई के पास आये और उन्होंने कंधे पर बच्चे को न जाने देने के संबंध में उनकी बेरहमी और दयाहीनता की निंदा की। कुछ कुलियों ने बिना पैसे लिए ही बच्चे को ले जाने को कहा। जब इस प्रकार की फटकारें असह्य हो गईं तो मेरे भाई ने कुलियों से कहा कि, 'अगर कोई भी बालक को कंधे पर चलने के लिए राजी कर ले तो मैं दुगुना किराया दूँगा।' कुछ कुलियों ने बालक के पास पहुँचने का प्रयत्न किया । लेकिन बालक ने घृणापूर्वक उनका स्पर्श करने से इन्कार कर दिया । यही नहीं, उसने उँचे पहाड़ पर जाने में विघ्न डालने के बारे में बुरा-भला भी कहा । इस प्रकार का बर्ताव पहले दिन ही हुआ, उसके _ बिना २०
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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