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________________ - ३२९ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ पूर्व कथन की सत्यता जाँचने की दृष्टि से पालघर पहुँचकर मैने बालक से कहा कि, 'हम लोग सिद्धाचलजी आ गये । सामने की पहाडियाँ ही वह पवित्र तीर्थ है ।' बालकने एकदम उत्तर दिया "बिलकुल नहीं" मैने सूरत पहुँच कर वही प्रश्न फिर किया और वही उत्तर फिर मिला । रात्रि के लगभग १० बजे हम वीरमगाँव पहुँचे और आगे न बढ सकने के कारण हम उत्तर गये तथा रात में वेटींग रूम में ठहरे । बालक को यह कहने पर कि हम अपने गन्तव्य स्थान पर पहुँच गये हैं, उसने पुनः नकारात्मक उत्तर ही दिया । वढवाण शिबिर में और परीक्षाएँ दूसरे दिन हम वढवाण कैम्प पहुँचे और लगभग दो महीने लीमड़ी की धर्मशाला में ठहरे । बालक जब भी मन्दिरमें 'चैत्य वन्दन' और भजन बोलता तो लोग चारों ओर इकट्ठे हो जाते थे । वह आने जाने वाले साधुओं के प्रवचन भी बहुत ध्यान से सुनता था । हमारे वढवाण पहुँचने के कुछ समय बाद ऐसा हुआ कि जब एक दिन बालक मंदिर से वापस लौट रहा था तो किसी ने उससे पूछा कि, 'तुम कहाँ जा रहे हो ?' उसने उत्तर दिया कि मैं सिद्धाचलजी जा रहा हूँ । आश्चर्य की बात यह है कि जैसी बातचीत बम्बई के वालकेश्वर मन्दिर में हई थी वैसी ही बातचीत यहाँ फिर बालक और उस सज्जन के बीच हुई । वे बहुत ही प्रसन्न हुए। उन्होंने बालक को गोद में उठा लिया और घर ले आये । अब तो बालक को पूर्वजन्म की स्मृति होने के समाचार जंगल में लगी आग की तरह फैल गये और दूर-पास, सब जगह से पूछ-ताछ होने लगी । उस डेढ़ महीने के समय में लगभग १५००० लोग गुजरात और काठियावाड़ से उसे देखने आये होंगे । कुछ वृद्ध महिलाएँ तो ४० - ४० मील से पैदल चलकर उपवास करती हुइँ आईं और उन्होंने बच्चे को आदर देकर ही अपना उपवास तोड़ा, साथ ही उन्होंने उनके पूर्वजन्म और उत्तर-जन्म के संबन्ध में प्रश्न भी किये । इस प्रकार की सैकडों घटनाओं में से २ - ३ घटनाएँ उल्लेखनीय हैं।
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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