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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग २ ३२७ के लिए किये, लेकिन हमारी सभी योजनाएँ व्यर्थ गयीं । बच्चा निरंतर रोता ही रहा, और हमारी चिन्ताएँ बढती गयीं । अंतिम उपाय के रूप में मेरी माँ ने एक गीत गाकर उसे चुप करने का सुझाव दिया । उस समय यह गीत गाया गया । "सिद्धवड़ रूख समोसऱ्या " जैसे ही 'सिद्धवड़' शब्द बालक के कानों में पहुँचा, उसने रोना बन्द कर दिया और पूरा गीत उसने बहुत ध्यान से सुना । अब बालक को चुप कराने का यही तरीका हमारे घर में मान्य कर लिया गया । जब कभी भी बालक बेचैन होता, तभी वह गीत उसे सुनाया जाता और वह हमेशा उसे ध्यानपूर्वक सुनता । बालक की स्मृतियाँ १९११ में १९०९ से १९९४ तक के समय में मैं बम्बई रहा । जब बालक ३ वर्ष का हुआ तभी से वह मेरे ओर मेरे बड़े भाई साहब के साथ 'सामायिक' में बैठता था । उसने 'सामायिक' पाठ सीख लिया था । वह हमारे साथ मन्दिर जाता और पूजा भी करता । पूजा के समय " ९ अंगों के दोहे" बोलता था । १९११ में एक दिन परिवार की महिलाओं के साथ बालक बंबई के वालकेश्वर स्थित जैन मन्दिर में दर्शन हेतु गया । वहाँ की मुख्य प्रतिमा को देखकर वह आवेश के साथ बोला "इस प्रतिमा से आदीश्वर भगवान की प्रतिमा ज्यादा बड़ी थी ।" महिलाएँ इस पर बहुत चकित हुईं और निम्नलिखित वार्तालाप चल पड़ा सोना ( बालक की बुआ ) तुम कौन से आदीश्वर भगवान की बात करते हो ?' - सिद्ध सोना सिद्धाचल के आदीश्वर भगवान की । यह तुझे कैसे मालुम ? सिद्ध मैंने उस प्रतिमा की पूजा की है । -
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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