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________________ ३१८ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ लेकिन धर्मप्रेमी परिवार के सदस्यों ने विचार विनिमय करके गर्भपात नहीं करवाने का निर्णय किया । कुछ महिनों के बाद चिकित्सक की रिपोर्ट के मुताबिक राक्षसी जैसी बच्ची का जन्म हुआ । उसका नाम 'विरति' रखा गया । उसके शरीर में से अक्सर मवाद निकलता रहता था। उस धर्मिष्ठ परिवार ने निर्णय किया कि इसको बहुत धर्म आराधना करवायेंगे और पुण्यशाली बना देंगे । ४० दिन के बाद उसको स्नान कराकर जिनपूजा करवायी । शरीरमें से अक्सर मवाद निकलता होने के कारण केवल मूलनायक प्रभुजी के चरणांगुष्ठ के उपर ही तिलक करवाते थे । शत्रुजयादि अनेक स्थावर तीर्थों की एवं आचार्य भगवंतादि अनेक जंगम तीर्थों की यात्रा और वंदन विरति को करवाने लगे । आचार्य भगवंतादिको उसके माता-पिता कहते थे कि, 'अल्प समय के अतिथि को हम स्थावर-जंगम तीर्थों की यात्रा-वंदन करवाते रहते हैं । शत्रुजय तीर्थ की यात्रा करने से इसका भव्यत्व निश्चित हो गया है। पूर्व जन्म के किसी पाप के उदय से इसको ऐसा शरीर मिला है मगर अब उसका पुण्य बढे और इसकी सद्गति एवं आत्महित हो इसके लिए हमने इसको बहुत धर्म करवाया है। केवल महिनोंमें उसकी आयु समाप्त हो गयी । अंतिम समयमें उसको अच्छी आराधना करवायी गयी । यह बालिका कितनी भाग्यशाली कि इसको ऐसे धर्मी माता-पिता मिले जिन्होंने गर्भपात न कराते हुए इसको अच्छी तरह से आराधना करवायी । स्वार्थ से भरपूर इस संसारमें इसके माँ-बाप इत्यादि ने इसके आत्मा की हितचिन्ता की। भाग्यशाली वाचक वृंद से विज्ञप्ति है कि इस दृष्टांत को पढकर आप भी संकल्प करें कि अपने बच्चों में भी धर्म संस्कारों का सिंचन करेंगे और उनको खूब धर्म आराधना करवायेंगे । आपके संतान तो इससे बहुत पुष्यशाली हैं । उनको अच्छी तरह से धर्म आराधना करवाने से आपको भी ऐसा पुण्योपार्जन होगा कि जिससे आपको भी भवोभव धर्मनिष्ठ मातापिता मिलेंगे और जन्म से ही विशिष्ट कोटिकी धर्मसामग्री संप्राप्त होगी।
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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