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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ २९१ (८) एक बार रतिलालभाई ट्रेईन में यात्रा कर रहे थे । रास्ते में चेकर आया । रतिलालभाई ने टिकट दिखायी । फिर भी टी. सी. ने कहा कि, 'उत्तर जाईए' । रतिलालभाई जीवदया के जरूरी कार्य के लिए इंदोर से मक्षीजी की ओर जा रहे थे । टिकट होते हुए भी टी.सी. ने जबरदस्ती से उनको नीचे उतार दिया । उसके बाद ट्रेइन को थोड़ी ही देर में अकस्मात् हुआ । उस डिब्बे के सभी मुसाफिर मर गये । रतिलालभाई बच गये !!! कहा भी है कि "धर्मो रक्षति रक्षितः" अर्थात् जो प्रतिकूलता में भी अपने धर्मनियमकी रक्षा करता है उसकी धर्म भी अवश्य रक्षा करता ही है । रतिलालभाई के जीवन प्रसंगों को पढकर सभी धर्म का दृढतापूर्वक पालन करें यही हार्दिक शुभाभिलाषा । १०० १५०० सूअरों को बचानेवाले जीवदयाप्रेमी । सुश्रावक श्री बाबुभाई कटोसणवाले . ___ "श्रावकजी ! मैं अभी अभी स्थंडिल भूमि से वापिस आ रहा हूँ। वहाँ गाँव के बाहर एक वाड़ेमें सैंकडों सूअरों को इकट्ठे किए गये हैं । मुझे लगता है कि उनको कसाइयों के वहाँ बेचने के लिए पकड़ा गया होगा । आप बराबर जाँच करके उनकी रक्षा के लिए उचित करें ।" गुजरात के कड़ी गाँव (जिला महेसाणा) में प. पू. आ. भ. श्री विजय लब्धिसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्य पू. पं. श्री पद्मविजयजी गणिवर्य म.सा. ने उस गाँव के एक जीवदयाप्रेमी सुश्रावक को करुणाद्र हृदय से उपरोक्त बात कही। ___ "महाराज साहब । आपकी बात सच्च है । हम सब संमिलित होकर उनको बचाने के लिए यथाशक्य प्रयत्न अवश्य करेंगे" श्रावक ने विनय पूर्वक प्रत्युत्तर दिया । गाँव के अन्य अग्रणी श्रावकों को साथ में लेकर वे श्रावक म्युनिसिपल प्रेसिडेन्ट एवं मुख्य ओफिसर को मिले । चीफ ओफिसर ने
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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