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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ (१) इ.स. १९४७ में भारत देश स्वतन्त्र हुआ उससे पहले के समय की यह बात है । उस वक्त हिंदुस्तान के उपर अंग्रेजों की हकूमत चलती थी।
कुछ अंग्रेज अमलदार जब उनके घोड़े वृद्ध होते थे तब उनको गड्ढे में उतारकर बंदूककी गोली से सूट कर देते थे ।
'आत्मवत् सर्वभूतेषु' की जीवनदृष्टिवाले वढवाण के जीवदया प्रेमी सुश्रावक श्री रतिलालभाई को यह बात अत्यंत खटकती थी ।
___ एक बार उनको खबर मिली कि अंग्रेज अमलदारोंने वृद्ध घोड़ों को गड्ढे में उतारा है और कुछ ही समय में उनको सूट करनेवाले हैं। रतिलालभाई तुरंत अंग्रेज अमलदार के पास गये और घोड़ों को नहीं मारने के लिए उनको बहुत समझाया, मगर अमलदार टस से मस नहीं हुआ। तब रतिलालभाई स्वयं उस गड्ढे में उतरे और घोड़ों के आगे खडे रहकर अमलदार को कहा कि 'पहले मेरे उपर बंदूक चलाईए, उसके बाद ही घोड़ों पर बंदूक चल सकेगी'। यह सुनकर अमलदार आग बबूला हो गया
और रतिलालभाई को पकड़वाकर कमरे में बंद कर दिया । रतिलालभाई वहाँ भी नवकार महामंत्र का स्मरण करते हुए घोड़ों को बचाने के लिए प्रभुप्रार्थना करने लगे। . सच्चे हृदय की नि:स्वार्थ प्रार्थना का स्वीकार हुआ हो वैसी एक घटना घटित हुई । उस कमरे की दीवार ईंट या पत्थरों की नहीं थी मगर लकड़ी की पट्टियों से बनी हुई थी. रतिलालभाई ने उसके छिद्रों में से पास के कमरे में दृष्टिपात किया तो वहाँ अंग्रेज अमलदारों के लिए एक बड़ी कढाई में दूधपाक तैयार हो रहा था । उसमें उपर के नलियोंमें से पसार होते हुए साँपका जहर गिरता हुआ उन्होंने देखा । समयसूचकता से तुरंत उन्होंने लकडी के द्वारा कढाई को जोर से धक्का मारकर दूधपाक जमीं पर गिरा दिया । अंग्रेज अमलदारों को जब इस बात का पता चला तब पहले तो वे अत्यंत क्रुद्ध हुए, मगर बादमें साँपके जहर की बात जानकर दूधपाक को प्रयोगशाला में भेजा । उसमें जहर का अस्तित्व सिद्ध होने पर आश्चर्य चकित होकर उन्होंने रतिलालभाई को पूछा कि 'हम तो तुम्हारे