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________________ तस्वीर परिचय (१-३) कंदमूल भक्षण एवं कंदमूलकी खेती के भी त्यागी, जैन धर्म के पालक श्री भाणाभाई परमार (हरिजन) एवं उनकी धर्मपत्नी मोंघीबेन एवं मोंधीबेन के भाई मावजीभाई भगत । दोनों भाई बहनोंने इस अनुमोदना समारोह के पश्चात् पुनः शंखेश्वरमें आकर प.पू.आ.भ. श्री नवरत्नसागरसूरीश्वरजी म.सा. की निश्रामें उपधान तप भी किया !... (बहुरत्ना वसुंधरा भाग-१, दृष्टांत नं. ८५) (प्रागपुर - कच्छ वागड़) (४) जिनपूजा, प्रतिक्रमण, उपवास, आयंबिल आदि के आराधक, हांसबाई मा (खवास-मुस्लिम) (कच्छ-मोटी खाखर) (बहुरत्ना वसुंधरा भाग-१, दृष्टांत नं. ८३) विशिष्ट संवेग (तीव्र मोक्षाभिलाष) एवं निर्वेद (सांसारिक विषयों के प्रति वैराग्य) से संपन्न रेखाबेन मिस्त्री (गांधीधाम-कच्छ) (बहुरत्ना वसुंधरा भाग-१, दृष्टांत नं. ८६) ... कंदमूलभक्षण एवं कंदमूल की खेतीमें भी अत्यंत पाप समझकर उनके त्यागी बनकर, नित्य चौविहार, जिनदर्शन एवं नवकार महामंत्र का स्मरण करनेवाले हरिजन बेचर आला एवं उनकी धर्मपत्नी । दोनों भव्यात्माओं ने अनुमोदना समारोह के पश्चात् पुनः शंखेश्वर तीर्थ में आकर महातपस्वी प.पू.आ.भ. श्री नवरत्नसागरसूरीश्वरजी म.सा. की पावन निश्रामें उपरोक्त मोंघीबेन एवं मावजीभाई के साथ उपधान तप अत्यंत आनंद एवं अहोभावके साथ परिपूर्ण किया । भविष्य में शत्रुजय महातीर्थ की ९९ यात्रा एवं छ'री' पालक संघमें चलकर तीर्थयात्रा करने की भावना भी रखते हैं । (बहुरत्ना वसुंधरा भाग-१, दृष्टांत नं. ८५) -(17
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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