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________________ २४६ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग थे उसमें बचुबाई भी हमेशा सहयोगी होने लगे । फलतः पिछले १५ साल में इस दंपतीने निम्नोक्त अनुमोदनीय आराधनाएँ की हैं । (१) ४ वर्षीतप एकांतरित उपवास- बिआसन द्वारा । (२) १ वर्षीतप छठ्ठ के पारणे छठ्ठ से । (३) १ मासक्षमण (टोकरसीं भाई का ) और सिद्धितप ( बचुबाई का ) (४) शत्रुंजय गिरिराजकी १६ बार ९९ यात्रा । (५) छठ्ठ के पारणे छठ्ठ तप के साथ २ बार ९९ यात्राएँ कीं । इसमें प्रथम उपवासमें ६ यात्राएँ + दुसरे उपवासमें ६ यात्राएँ + पारणे के दिन २ यात्राएँ इस तरह कुल १४ यात्राएँ करने के बाद स्वयं रसोई बनाकर पारणा करते थे !!! (६) अठ्ठम के पारणे अठ्ठम से ९९ यात्राएँ । इसमें तीनों उपवास के दिन ५ + ५५ इस तरह कुल १५ यात्राएँ करने के बाद स्वयं रसोई बनाकर सुपात्रदान करने के बाद पारणा करते थे । (७) सं २०५१ में मेरे गुरुदेव पू. गणिवर्य श्री महोदयसागरजी म.सा. ठाणा ३ की निश्रामें सर्व प्रथमबार गिरनारजी महातीर्थ की सामूहिक ९९ यात्रा का आयोजन सा. श्रीज्योतिष्प्रभाश्रीजी की प्रेरणा से हुआ था तब भी यह दंपती सिद्धाचलजी की १३ वीं ९९ यात्रा केवल ३६ दिनों में पूर्ण कर के गिरनारजी पधारे थे । उस वक्त उन दोनों के बीसस्थानक तप के एकांतरित उपवास चालु थे । उपवास के दिन गिरनारजी महातीर्थ की ४ यात्राएँ एवं पारणे के दिन २ यात्राएँ कर के ९९ यात्राएँ कीं । इस तरह सिद्धाचलजी की १६ + गिरनारजी की २ + समेतशिखरजी महातीर्थ की १ बार - कुल मिलाकर १९ बार ९९ यात्राएँ हुईं । प्रायः हरेक ९९ यात्रा के दौरान वे हमेशां स्वयं रसोई कर के भोजन करते 1 थे । किसी भी संघ के रसोड़े में भोजन नहीं करते थे । गिरनारजी में भी स्वयं मुँग पकाकर पारणा करते थे, बाद में दोपहर को १ बजे भोजनशालामें खाना खाते थे । केवल समेतशिखरजी महातीर्थ की ९९ यात्रा के दौरान भोमियाजी भवन के एक ट्रस्टी महानुभाव के अत्यंत आग्रह के
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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