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________________ २३८ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ पता : धीरुभाई सी. शाह ६०४-७०४ धरम पेलेस, पारले पोइन्ट अठवा लाइन्स, सुरत (गुजरात) पिन : ३९५००७ फोन : ०२६१-२२८०१८, २२८०७८, २२८५५९ (घर) ४१७३५०-४३५७४२-४३२८९३ (ओफिस) फेक्स : ३५७३९ हररोज त्रिकाल ३४६ लोगस्स का कायोत्सर्ग। करते हुए उत्कृष्ट आराधक श्राद्धवर्य । श्री हिमतभाई बेड़ावाले ___'वे तो करीब साधु जैसा जीवन जीते हैं। ऐसे उद्गार कई लोगों के मुखसे जिनके लिए निकलते रहते हैं ऐसे श्राद्धवर्य श्री हिंमतभाई वनेचर बेड़ा (राज.)वाले (उ.व.-७० करीब) अध्यात्मयोगी प.पू. पंन्यास प्रवर श्री भद्रंकरविजयजी म.सा. के विशिष्ट कृपापात्र एवं उन्हीं के मार्गदर्शन के मुताबिक आत्मसाधना के पथ पर तीव्र गति से आगे बढ़ते हुए महान साधक आत्मा हैं । अरिहंत-सिद्ध-आचार्य-उपाध्याय-साधु-सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञानसम्यक् चारित्र और सम्यक्तप स्वरूप नवपदजी की आराधना उनके रोए रोंए में आत्मसात् हो गयी है, इसीलिए वे नवपदजी के ३४६ गुणों के अनुसार ३४६ लोगस्स का कायोत्सर्ग प्रतिदिन त्रिकाल करते हैं !.... प्रायः ६ विगइयों का त्याग, ५ द्रव्यों से अधिक द्रव्य नहीं खाना, वर्धमान तप एवं नवपदजी की आयंबिल ओलियाँ करना, दिन-रात का अधिकांश समय सामायिक में ही बीताना , पर्वतिथियों में पौषध करना, केश लुंचन करना, जीव विराधना से बचने के लिए चातुर्मास में कहीं भी बाहर गाँव नहीं जाना, वर्षाचातुर्मास सिवाय के कालमें सिद्धचक्र महापूजन की विधि करवाने के लिए मुंबई से बाहर भी जाना पड़े तो बाहर का पानी भी नहीं पीना, हररोज संक्षेप में श्री सिद्धचक्र पूजन विधि करना, पंच परमेष्ठी भगवंतों को खमासमंण देकर वंदना करना... इत्यादि अनेकविध
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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