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________________ २२४ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ अन्य किसी गाँव में मैं रहता होता तो शायद इतने जिनालयों में पूजा करने की सुविधा मुझे नहीं मिल सकती, मगर अहमदाबाद में यह लाभ आसानी से मिल रहा है उसका मुझे अत्यंत आनंद है । 'आप किस किस जिनालय में हररोज पूजा करते हैं ?' इस प्रश्न के प्रत्युत्तर में उन्होंने निम्नोकत जिनालयों की गणना करवायी । शाहपुरमें२, खाडियामें-१, हठीसिंगका-१, पंचभाईकी पोल में-२, घीकांट में-१, जेसिंगभाई की वाडीमें-१, पांजरापोल विस्तारमें-५, रिलीफ रोड-शांतिनाथ जिनालय-१, लहेरीया की पोल-१, जगवल्लभपार्श्वनाथ आदि-५, झवेरी वाड़ एवं दोशीवाड़ा की पोल में-१२, पतासा की पोल में -४, शेख के पाड़े में-४, देवसा की बारी में-४, इस तरह ४४ जिनालयों में पूजा करने के बाद ९-३० बजे नवकारसी करके पुनः विजय नगर में-१, नारणपुरा चार रस्ता में-१, प्रगति नगर में-१, मीरांबिका-१, ओसमानपुरा में-२, शांतिनगर में-२, झवेरी पार्क में-१, हसमुख कोलोनी में-१, इस तरह के १० जिनालय मिलाकर कुल ५४ जिनालयों में पूजा करता हूँ । प्रत्येक जिनालय में मूलनायक प्रभुजी की नवांगी पूजा करता हूँ, बाकी के भगवान के दो अंगुष्ठ एवं ललाट पर तिलक करता हूँ। __ प्रारंभ में एकाध जिनालय में पूजा करता था तब अपेक्षित एकाग्रता और भाव नहीं आते थे, लेकिन इस तरह अनेक जिनालयों में • पूजा करने में अत्यंत आनंद और उल्लास का अनुभव होता है । प्रभुजी का दर्शन करते ही हृदय भाव विभोर बन जाता है । आँखोमें से हर्षाश्र की धाराएँ बहने लगती हैं । ऐसे अवर्णनीय आनंद की अनुभूती होती है, कि न पुछो बात ! मेरा अंतस् कहता है कि अब ४-५ भवों से ज्यादा समय तक संसार में भटकना नहीं पड़ेगा । ये अश्रु ही मेरी सच्ची संपत्ति है । इसके सिवा मुझे और कुछ नहीं आता । इस तरह अनेक जिनालयों में दर्शन-पूजन करने से आनुषंगिक रूप से दूसरा विशिष्ट लाभ यह भी होता है कि विविध जिनालयों में प्रभुदर्शन करने के लिए पधारे हुए करीब २०० जितने साधु-साध्वीजी भगवंतों के दर्शन भी हो जाते हैं ।
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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