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________________ २०५ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ कुछ वर्ष पूर्व एक दिन साधना से उठने के समयमें उपरसे दिव्य सुगंधमय सुपारी नीचे पड़ी । उसके बाद संप्राप्त संकेत के अनुसार दूध और पानी से प्रक्षालन करने पर दूसरे दिन वह प्रक्षालन जल घी के रूपमें परिवर्तित हो गया । करीब २ साल तक वह दिव्य सुपारी उनके घर में रही ओर उसके प्रक्षालन जलसे केन्सर जैसी असाध्य बीमारियाँ भी दूर हुईं। और भी अनेक चमत्कार हुए । उसके बाद अचानक कांतिलालभाई को मुंबई जाने का प्रसंग उपस्थित हुआ, तब घर में रखी हुई दिव्य सुपारी की प्रतिदिन वासक्षेप पूजा आदि नहीं होने से उसमें छिद्र हो गया और उसका प्रभाव कम हो गया । बादमें एक साध्वीजी भगवंत के मार्गदर्शन के मुताबिक उस सुपारी को एक कुएं में विसर्जित कर दिया ।... कांतिलालभाई ने पूर्वोक्त मुनिराज श्री सुबोधविजयजी के मार्गदर्शन के मुताबिक एक बार अठ्ठम तप के साथ श्री ऋषिमंडल स्तोत्र के मंत्रका ८ हजार बार जप किया था । दूसरी बार पोली अठ्ठम के साथ ८ हजार जप एवं ३ बार ३-३ एकाशन पूर्वक ८-८ हजार जप किया था । इसके अलावा श्री शंखेश्वर तीर्थमें रहकर ३ एकाशन पूर्वक उवसग्गहरं स्तोत्रका १००८ बार जप किया था । दूसरी बार शंखेश्वर तीर्थमें ३ एकाशन पूर्वक १२ ॥ हजार बार पद्मावती माताका जप किया था तब उनके घर पर उनकी धर्मपत्नी सुश्राविका श्री पुष्पाबहन को पद्मावती माता का दर्शन हुआ था। एक बार रसोई बनाने वाली बाई के रूपमें एवं दूसरी बार गृहकार्य करनेवाली स्त्री के रूपमें भी पद्मावती माताने उनको दर्शन दिये थे । करीब ३ साल पूर्व कांतिलालभाई को कुंडलिनी जागरण का एक विशिष्ट अनुभव हुआ था । नाभि चक्रमें ठम... ठम... ठम... इस तरह जोर से ढोल जैसी ध्वनि होने के साथ पूरा शरीर उछलने लगा । उस के बाद हृदय चक्र (अनाहत चक्र) में हूँ-हूँ-हूँ... इस प्रकार का अनाहत नाद उत्पन हुआ जो आज भी चालु है मगर श्री कांतिलालभाई उसके प्रति ध्यान नहीं देते किन्तु श्रीवीतरागपरमात्मा के ध्यान में ही लीन रहते हैं । पिछले दो साल से श्री पार्श्वनाथ प्रभुकी एवं पद्मावती माता की पूजा करते समय में प्रभुजी के मस्तक के उपर रही हुई फणा का स्पर्श करते हैं तब वह स्पष्ट रूपसे जीवंत फणा की तरह दबती हुई महसूस होती
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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