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________________ १९४ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ किया जाय तो शायद एक स्वतंत्र किताब ही तैयार हो जाय । वि.सं. . २०५० के चातुर्मास में नारणपुरा (अहमदाबाद)में एवं वि.सं. २०५१ के चातुर्मासमें बड़ौदामें हमारे पास धीरजभाई आये थे तब हमारी प्रेरणासे उन्होंने ऐसे कुछ अनुभव निखालसतासे हमें सुनाये थे । उनमेंसे नवकार महामंत्र के प्रभाव से एक मुनिराज का केन्सर का असाध्य दर्द कैसे केन्सल हुआ उसका रोमांचक अनुभव हम धीरजभाई के शब्दों में ही पढेंगे। "वि.सं.२०४९में शीतकालमें पंतनगर (मुंबई) के तपागच्छीय उपाश्रयमें वर्षमान तपोनिधि प.पू.आ.भ. श्री विजय भुवनभानुसूरीश्वरजी म.सा. के समुदाय के प.पू.पं. श्री जयतिलक विजयजी म.सा. के शिष्य पू. मुनिराज श्री त्रिभुवनतिलक विजयजी म.सा. पधारे थे । उनको गलेमें भयंकर केन्सर हुआ था, जो दूसरे स्टेज तक आगे बढ़ चुका था । उनकी शुश्रूषा के लिए भाई म.सा. पू. मुनि श्री हंसरत्नविजयजी म.सा. (पू. मुनि श्री तत्त्वदर्शन विजयजी म.सा. के भाई म.सा.) साथमें थे । केन्सर की भयंकर पीड़ा होते हुए भी म.सा. किसी भी प्रकार की दवाई लेने के लिए तैयार नहीं थे । उनके गुरु महाराज एवं संघ के अग्रणी श्रावक तथा संसारी रिश्तेदारों की आग्रह पूर्ण विज्ञप्ति के बावजूद भी दवाई लेने लिए संमत नहीं हुए। उन्होंने अब अधिक जीने की आशा छोड़ दी थी। - मेरी धर्मपत्नी दिव्याबहन को इस बात का पता चलते ही उसने मुझे कहा कि 'आप म.सा. को औषध ग्रहण करने के लिए संमत कर दें ।' मैंने कहा 'ठीक है, मैं कोशिश करूँगा । नवकार के प्रभावसे वे जरूर संमत हो जायेंगे ।' बादमें मैंने २ दिन तक लक्ष्य पूर्वक नवकार महामंत्र का स्मरण यथासमय किया । तीसरे दिन नवकार के प्रभावसे मुझे अंतः स्फुरणा हुई कि - 'आप अभी उपाश्रयमें जाकर म.सा. को जो भी कहेंगे, वे स्वीकार कर लेंगे' !... __मैं पू. मुनि श्री हंसरत्न विजयजी म.सा. के पास गया और सारी बात बतायी । उन्होंने मुझे कहा - 'आपको निषेधात्मक प्रत्युत्तर ('नहीं') सुनना हो तो ही औषध की बात करना' ।
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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