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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग १८३ ( हाल गणि), मुनि श्री महोदयसागरजी (हाल गणि- प्रस्तुत पुस्तक के संपादक ) और मुनि श्री पुण्पोदयसागरजी ) की निश्रामें इतना विशाल और भव्य आयोजन कैसे आयोजित हुआ होगा ? !... लेकिन, 'युगादिदेव श्री आदिनाथ दादा एवं श्री सिद्धाचलजी महातीर्थका अद्भुत प्रभाव, तीर्थ प्रभावक अचलगच्छाधिपति प.पू. आ.भ. श्री गुणसागरसूरीश्वरजी म.सा. की असीम कृपा और योगनिष्ठा, परमोपकारी सुसाध्वी श्री गुणोदया श्रीजी म.सा. के दिव्य आशीर्वाद ही इस आयोजन की सफलता के अदृश्य कारण हैं' ऐसा श्री संघपतिजी विनम्रभावसे निवेदन करते थे । इसी प्रभाव - कृपा और आशीर्वादों के प्रभावसे ही केवल ४ वर्ष का दीक्षा पर्याय होते हुए भी सिर्फ "नमो अरिहंताणं" पद के ऊपर ही १०० दिन के इस पूरे आयोजनमें व्याख्यान देने का सद्भाग्य भी मुझे संप्राप्त हुआ था ।... यात्रा संघपति श्री शामजीभाई ने स्वयं मौनपूर्वक ९९ यात्रा की थी - पूजा आदि करके करीब ३-४ बजे वे धर्मशाला में वापिस लौटते थे, बादमें एकाशन करते थे तब तक वे मौन ही रहते थे । उन्होंने एवं अन्य भी कई यात्रिकोंने इस ९९ यात्रा के दौरान श्री सिद्धगिरिजी की सभी ट्रंकोंमें रहे हुए सभी जिनबिम्बोंकी नवांगी पूजा रूप 'भवपूजा' की थी । संघपति मालारोपण के समयमें संघपति श्री शामजीभाई ने आजीवन क्रोध न करनेकी प्रतिज्ञा स्वीकार करके इस आराधना रूपी मंदिर के उपर मानो कलश चढाया था । १०० दिन पर्यंत प्रतिदिन सैंकड़ों साधु-साध्वीजी भगवंतों को तीनों टाईम सुपात्रदान का अत्यंत अनुमोदनीय आयोजन भी उन्होंने किया था । पोष पूर्णिमा के बाद जब अन्य धर्मशालाओंमें ९९ यात्रा का आयोजन पूर्ण हो चुका था तब विशेष रूप से यह महान लाभ उन्होंने लिया था । इस संपूर्ण आयोजनमें एक भी रूपये का दान उन्होंने किसी से भी स्वीकार नहीं किया था, संपूर्ण लाभ दोनों भाइयोंने ही मिलकर लिया था ।
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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