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________________ १७२ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ आत्मज्ञानी श्रीमद् राजचंद्र के आध्यात्मिक साहित्यका वे विशेष प्रकार से परिशीलन करने लगे । इसके सिवाय भी उन्होंने योगशास्त्र, योगबिंदु, अध्यात्म-कल्पद्रुम, योगदृष्टि-समुच्चय, ध्यान दीपिका, ज्ञानसार अष्टक, ललित विस्तरा, उपमिति-भव प्रपंचा कथा, विशेषावश्यक भाष्य, समयसार आदि अनेक आध्यात्मिक ग्रंथों का वांचन किया । इस प्रकारसे एकांत वास और मौन पूर्वक ज्ञान-ध्यान, जप, आत्म चिंतन और प्रभु प्रार्थनादि निमित्तोंसे अंतःकरण की उत्तरोत्तर विशद्धि के कारण से उनको विविध प्रकार की आध्यात्मिक अनुभूतियाँ होने लगीं । कभी घंट, झल्लरी, वीणा, पखावज, शंख, भेरी, दुंदुभि आदि विविध वादित्रों की ध्वनि तुल्य अनाहत नाद का श्रवण भीतरमें होने लगा तो कभी आज्ञाचक्र (दोनों भौहों के बीचमें) प्रकाश पुंज का दर्शन होने लगा । कभी दीपक, सूर्य, चन्द्र या बिजली जैसे विशिष्ट प्रकाश की अनुभूति होती थी । कभी दिव्य सुगंध का अनुभव होता था तो कभी गहन शांति के बादलों की घटा मस्तक से प्रारंभ होकर क्रमशः पूरे शरीर को घेर लेती हो ऐसी अनुभूति होती थी !... इस प्रकार के अनुभवों के कारणसे उनका साधना के लिए उत्साह अभिवर्धित होता जाता था । लेकिन उनको तो आत्मानुभव की लगन थी, इसलिए वे हररोज महाविदेह क्षेत्रमें विहरमान श्री सीमंधर स्वामी भगवान को अत्यंत आई हृदयसे भाव विभोर होकर प्रार्थना करते थे कि - 'हे प्रभु ! अब मुझे ऐसे सामान्य कोटि के क्षणिक अनुभवों से संतोष नहीं होता है । मुझे तो आपके वीतरागतामय आत्मिक स्वरूप की अनुभूति चाहिए'। वे हररोज श्री सीमंधर स्वामी भगवंत का सुप्रसिद्ध स्तवन - . "सुणो चंदाजी ! सीमंधर परमातम पासे जाजो मुझ वीनतड़ी प्रेम धरीने एणी परे तुमे संभळावजो"... अत्यंत भाव विभोर होकर, रोम रोम में से पुकार उठता हो उसी तरह गद्गद कंठ से, आई हृदय से और अश्रु प्लावित नेत्रोंसे दिनमें तीन
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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