SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 233
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५६ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ कच्छ-मुन्द्रा शहर के आठ कोटि मोटी पक्ष स्थानक वासी जैन परिवार में उत्पन्न हुए और कच्छ-मांडवी के वीर सैनिक दिलीपभाई नाम के युवक के साथ विवाहित हुए दक्षाबहन हाल मुंबई के पास डहाणु गाँवमें रहते हैं। वर्तमानमें उनकी उम्र ३९ सालकी है । २१ साल की उम्र में उनकी शादी हुई थी । ३ वर्ष के विवाहितजीवन के दौरान उनको एक पुत्ररत्नकी प्राप्ति हुई है। उनके पति दिलीपभाई सुप्रसिद्ध युवा-प्रतिबोधक प. पू. पंन्यास प्रवर श्री चन्द्रशेखरविजयजी म.ग. के परम भक्त हैं । दक्षाबहन की उम्र जब २४ साल की थी तब वे एक बार प. पू. चन्द्रशेखरविजयजी म.सा. का प्रवचन सुनने के लिए गयी थीं । उसी प्रवचनमें पूज्यश्रीने ब्रह्मचर्य की महिमा बताकर, एक ही बार के अब्रह्म सेवनमें २ से ९ लाख जितने गर्भज मनुष्य, असंख्य संमूर्छिम मनुष्य और अगणित बेइन्द्रिय जीवों की हिंसाका कैसा भयंकर पाप लगता है उसका असरकारक शैलीमें वर्णन किया । उसे सुनकर लघुकर्मी दक्षा बहन की आत्मा चौंक उठी और उसी प्रवचन के अंतमें उन्होंने दृढ संकल्प कर लिया कि, 'अब से किसी भी संयोगों में क्षणिक सुखाभास के खातिर ऐसा घोर पाप मुझे नहीं ही करना है !'... __घर आकर उन्होंने अपने शुभ संकल्प की बात पति से कही और आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत स्वीकारने के लिए प्रेरणा की । दिलीपभाई को यह बात पसंद थी, लेकिन उनका मनोबल उतना दृढ नहीं होने से उन्होंने धीरे धीरे अभ्यास करने के लिए प्रस्ताव रखा । परंतु दृढ मनोबली दक्षाबहन अब एक भी बार अब्रह्म के पाप को करने के लिए तैयार नहीं थीं । वे अपने निर्णय में अडिग ही रहीं । कुटुंब के अन्य सदस्यों को इस बात का पता चलते ही उन्हों ने दक्षाबहन को समझाने की कोशिष की कि - 'अभी इतनी छोटी उम्रमें अगर तुम ऐसा निर्णय करोगी भी तो संभव है कि तुम्हारे पति नाराज होकर तुम्हें छोड़ देंगे अथवा वे खुद कहीं अन्यत्र भी चले जायेंगे ।' दक्षाबहनने दृढता से प्रत्युत्तर दिया - ‘पतिदेव को दूसरी शादी करनी हो तो मैं बाधा रूप नहीं बनूंगी । वे मुझे छोड़ देंगे तो मैं मेरे आत्मबल पर निर्भर होकर निर्मल जीवन जीऊँगी, लेकिन मेरे इस
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy