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________________ १५० बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ भारतीबहन को अपनी पुत्रवधू बनाने का प्रस्ताव रखा । उन्होंने भी तुरंत सहर्ष संमति दे दी । उसके बाद मातृश्री कंचनबहनने जतीनभाई के पास इस संबंध का स्वीकार करने के लिए आग्रहपूर्ण निवेदन किया । इससे पूर्व जतीनभाई अनेक कन्याओं के माँ-बाप की ओर से किये गये सगाई के प्रस्ताव को इन्कार कर चुके थे । इसलिए 'अब कब तक मातृश्री की विज्ञप्ति का इन्कार करता रहूँ' ऐसी विचारणा और दूसरी और पाँच वर्ष के लिए ली हुई ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा होने से हाँ या ना कहने के लिए असमर्थ होने से मौन रहे । उनके मौन को संमति समझकर मातृश्री ने शीघ्र सगाई के लिए तैयारी करने का प्रारंभ कर दिया । अब परिस्थिति की गंभीरता को समझकर जतीनभाईने भारती बहनको इस हकीकत से अवगत करवाया और उसका अभिप्राय जानने के लिए कोशिष की । टी. वी. के उपर सप्ताह में दो चलचित्र देखनेवाली भारतीबहन को दीक्षा लेने की कल्पना भी नहीं थी । इसलिए उन्होंने इस बात में सहर्ष संमति व्यक्त कर दी । जतीनभाई को ५ साल तक ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा पूरी होनेमें २॥ साल बाकी थे । उन्होंने भारतीबहनको इस हकीकत से भी अवगत कराया और संयम स्वीकारने के अपने मनोरथ की बात भी कही । तब कुलीन आर्य कन्या भारती बहनने प्रत्युत्तरमें कहा कि - "जब आपका संयम स्वीकारने का निर्णय एकदम पक्का हो जायेगा तब अगर मेरे दिलमें भी दीक्षा लेने की भावना जाग्रत हो जायेगी तो मैं भी आपके साथ दीक्षा का स्वीकार करूंगी और अगर ऐसे परिणाम जाग्रत नहीं होंगे तो भी मैं आपको दीक्षा लेनेमें अंतराय रूप नहीं ही बनूँगी !!!" .... और आखिर वे दोनों सगाई के बंधन से जुड़ गये; लेकिन अभी शादी होने के लिए कुछ महिनों का व्यवधान था । एक दिन जतीनभाई ने अपनी सहधर्मचारिणी से पूछा कि - '५ साल तक ब्रह्मचर्य पालन की अवधि पूरी होने के बाद अगर कुछ समय के लिए प्रतिज्ञा की अवधि को लंबाया जाय अर्थात् पुनः २-४ साल के लिए प्रतिज्ञा को आगे बढाउँ तो तेरी संमति होगी न !... तब भारती बहनके मुँह से सहसा उद्गार निकले - 'इस तरह
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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