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________________ १३६ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ तब दूसरी ओर जैनेतर (मिस्त्री) कुल में उत्पन्न लेकिन बादमें जैन धर्म के मर्म को आंशिक रूपमें भी समझनेवाली एक आत्मा जैन धर्म के प्रति कितनी बेहद आस्था रखती है और कैसे मनोरथ करती है वह हम देखेंगे। मूलत: कच्छ-भूज के पास कुकमा गाँव में मिस्त्री कुल में उत्पन्न हुई किन्तु बाद में ऋणानुबंधवशात् कच्छ-रामपुर वेकड़ा गाँव के स्थानकवासी जैन परिवार में विवाहित हुई रेखाबहन (उ. व. २७) हाल गांधीधाम में अपनानगर विभाग में रहती हैं । बी. कोम. तक व्यावहारिक अभ्यास उन्होंने किया है। जैन परिवार में शादी होने के कारण से जैन साधु साध्वीजी भगवंतों के सत्संग और व्याख्यान श्रवण से रेखा बहन के अंतस्तलमें रहे हुए सुषुप्त धार्मिक संस्कार जाग्रत हो गये हैं, फलतः उन्होंने रात्रिभोजन एवं जमीकंद आदि अभक्ष्यों को आजीवन तिलांजलि दे ही है । (आज जैन कुलोत्पन्न भी कई आत्माएँ नरक के द्वार समान इन दो पापों को छोड नहीं सकते हैं उन्हें रेखाबहन के दृष्टांत में से खास प्रेरणा ग्रहण करने योग्य है ।) एकाशन, आयंबिल, उपवास, छठ्ठ, अठुम इत्यादि तपश्चर्या वे अक्सर करती रहती हैं । संसार के आरंभ समारंभ के कार्यों में अनिवार्य रूपसे होती हुई जीवहिंसा से उनका हृदय एकदम पिघल जाता है और वे घर के सदस्यों को भी अधिक से अधिक यतना युक्त जीवन जीने की प्रेरणा देती रहती है। उनको प्रीत नामका एक ही छोटा सा पुत्र है । अपनी उम्र छोटी होते हुए भी वे अपने पति को आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार करने के लिए अक्सर प्रेरणा देती है । वे अत्यंत भवभीरू और पापभीरू है। कच्छ में ७२ जिनालय की प्रतिष्ठा के प्रसंग पर उन्होंने अठुम तप किया था तब प्रभावना के रूप में मिली हुई 'बहुरत्ना वसुंधरा' भाग - १ किताब में दिये हुए दृष्टांतों को पढकर उन्होंने कहा कि "महाराज साहब! मेरी भी स्थिति कुछ अंश में ऐसी है । अगर मुझे
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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