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________________ १२४ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ ७४ हीनाबेन व्रजलाल (वैष्णव) की अनुमोदनीय आराधना मालेगाँव (महाराष्ट्र) निवासी हीनाबेन ब्रजलाल (वैष्णव) को शासनप्रभावक प.पू. आ. भ. श्रीमद् विजयलब्धिसूरीश्वरजी म.सा. की आज्ञावर्तिनी सा. श्री हंसश्रीजी के सदुपदेशसे जैन धर्मका रंग लगा है। उन्होंने अठ्ठाई, वर्धमान तपकी ओलियाँ आदि अनेक तपश्चर्याएँ की हैं । साधु-साध्वीजी भगवंतोंकी अनुमोदनीय भक्ति करते हैं । यथासमय प्रतिक्रमण आदि आवश्यक धर्मक्रियाएँ करते हैं । उनकी पुत्रवधूने अट्ठाई, सोलभत्ता, मासक्षमण आदि तपश्चर्याएँ की हैं। पिछले ४ वर्षों से इस परिवार के ऊपर परम तपस्वी प. पू. आ. भ. श्री विजय प्रभाकरसूरीश्वरजी म.सा. का भी बड़ा उपकार है । प. पू. आचार्य भगवंतश्री के चातुर्मास परिवर्तनका लाभ भी इस परिवारने लिया था । हार्दिक अनुमोदना। ७५ काणोदरमें रमेशभाई नाई की अनुमोदनीय देव गुरु भक्ति उत्तर गुजरात में पालनपुर के पास काणोदर नामका एक छोटा सा । गाँव है । हाल वहाँ जैन आबादी नहींवत् है । साधु साध्वीजी भगवंत काणोदर गाँवमें पधारते हैं, तब उनकी अत्यंत भावपूर्वक वैयावच्च वहाँ रहते हुए रमेशभाई (नाई उ. व. ४७) और उनकी धर्मपत्नी करते हैं । गाँव में छोटा सा मनोहर जिनालय है उसकी प्रक्षाल पूजा आदि भी रमेशभाई ही सम्हालते हैं । लेकिन यह कार्य वे अपनी आत्माके उपर अनुग्रह बुद्धि से करते हैं, इसलिए वेतन नहीं लेते, बल्कि ऐसा महान लाभ मिलने के लिए वे अपनी आत्मा को धन्य मानते हैं।
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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