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________________ ८४ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ | ४० जैन धार्मिक पाठशाला के शिक्षक समक्ष लाधुसिंह सोलंकी ( राजपूत ) राजस्थानमें पिंडवाडा के पास जाडोली गाँवमें जैन धार्मिक पाठशालामें शिक्षक के रूपमें बच्चोंमें जैनधर्म के संस्कारों का सिंचन करते हुए श्री लाधुसिंह सोलंकी (उ. व. ३९) को मेवाड देशोद्धारक प.पू.आ.भ.श्रीविजयजितेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के सत्संगसे जैन धर्मका रंग लगा । उन्होंने चार कर्मग्रंथ तक अभ्यास किया है। आजसे ५ साल पहले उन्होंने वर्धमान तपकी १०० + २० ओली के आराधक प. पू. पंन्यास श्री कनकसुंदरविजयजी म.सा. की निश्रामें वर्धमान आयंबिल तपका प्रारंभ किया और आज तक करीब २० ओली पूर्ण कर चुके हैं । सं. २०५१ के चातुर्मासमें उन्होंने सिद्धि तप जैसा महान तप भी कर लिया। वे अक्सर केश लोच भी करवाते हैं और दीक्षा लेने की भावना रखते हैं । जैनेतर कुलमें जन्म पाकर भी चार कर्मग्रंथ तक अध्ययन करके धार्मिक पाठशालामें अध्यापकके रूपमें सेवा देनेवाले लाधुसिंहजी सोलंकी के दृष्टांतमेंसे प्रेरणा लेकर सभी भावुक आत्मा सम्यक्ज्ञानकी आराधना द्वारा अपनी आत्माको निकट मोक्षगामी बनायें - यही शुभ भावना । पता : लाधुसिंह सोलंकी, जैन पाठशाला, मु.पो. जाडोली, वाया. पिंडवाड़ा, जि. सिरोही (राजस्थान) ४१ ८ सालकी उम्रमें ८२ दिनका धर्मचक्रतप करनेवाला योगीन्द्रकुमार प्रवीणभाई राठौड़ ( राजपूत) गुजरातमें धंधुका के पास खरड़ गाँवमें रहते हुए सद्गृहस्थ श्री भीमजीभाई राठौड़ (राजपूत) को शासन सम्राट, प. पू. आ. भ. श्रीमद्
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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