SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ | ऋण स्वीकार - सादर स्मति । (१) अनंत उपकारी, भवोदधितारक, वात्सल्य वारिधि, सच्चारित्र चूड़ामणि, अनन्य प्रभुभक्त, शासन सम्राट, भारत दिवाकर, तीर्थ प्रभावक, दिव्यकृपादाता, अचलगच्छाधिपति, प.पू. गुरुदेव आचार्य भगवंत श्री गुणसागरसूरीश्वरजी म.सा. (२) संलग्न ३१ वें वर्षी तप के आराधक, वर्तमान अचलगच्छाधिपति, तपस्वीरत्न, प. पू. आ. भ. श्री गुणोदयसागरसूरीश्वरजी म.सा.... (३) सूरिमंत्रपंचप्रस्थानसमाराधक, साहित्य दिवाकर, प.पू. आ. भ. श्री कलाप्रभसागरसूरीश्वरजी म.सा. (४) लेखन आदि शुभ प्रवृत्तियों में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूपसे सहायक बनते हुए विनीत शिष्य तेजस्वी वक्ता मुनिराज श्री देवरत्नसागरजी, स्वाध्याय प्रेमी मुनिराज श्री धर्मरत्नसागरजी, तपस्वी मुनिराज श्री कंचनसागरजी, सेवाशील मुनिराज श्री अभ्युदयसागरजी एवं प्रशिष्य मुनिराज श्री भक्तिरत्नसागरजी. (५) रत्नत्रयी की आराधनामें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूपसे सहायक बनते हुए सभी गुरुबंधुओं, छोटे-बड़े मुनिवर, नामी अनामी सभी शुभेच्छकों, हितचिंतकों आदि. . . (६) मुमुक्षु अवस्था में धार्मिक सूत्रों (सार्थ) का सुंदर अध्ययन करवाकर संयम जीवन की प्रेरणादात्री परमोपकारी योगनिष्ठा, तत्त्वज्ञा, स्व. सा. श्री गुणोदयाश्रीजी महाराज आदि... (७) मुमुक्षु अवस्था में ५ वर्ष पर्यंत संस्कृत-प्राकृत व्याकरण, न्याय, काव्य, षट् दर्शन आदिका अच्छी तरह अध्ययन करानेवाले पंडित शिरोमणि श्री हरिनारायण मिश्र (व्याकरण-न्याय-वेदांताचार्य) इत्यादि अगणित उपकारी आत्माओं का सादर स्मरण करते हुए गौरव एवं आनंद का अनुभव करता हूँ । _ - गणि महोदयसागर
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy