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________________ ७२ २८ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ ब्राह्मण प्रोफेसर पी. पी. राव की जैन धर्म के प्रति दृढ़ श्रद्धा आंध्रराज्यमें ब्राह्मण कुलोत्पन्न, वैष्णव धर्मानुयायी प्रो. श्री पी. पी. राव (उ. व. ६९) पुराने जमानेमें सुंदर अभ्यास करके ग्रेज्युएट बने हैं । उनको बचपन से ही वांचन का बहुत ही शौक था । जिज्ञासु एवं संशोधनशील होने से उन्होंने अनेक धर्म और दर्शन शास्त्रों का बहुत अध्ययन किया था मगर उनसे उनको पूरा संतोष नहीं हुआ था । हरेक धर्मों में उन्हें कुछ न कुछ कमियाँ प्रतीत होती थीं । निवृत्त होने के बाद जैन श्रावककी पेढ़ीमें रहते हुए वे जैनों के आचार-विचारसे प्रभावित हुए । अत्यंत जिज्ञासापूर्वक जैन धर्मके प्रत्येक विधि - निषेध के विषयमें अनेक प्रश्न करके वे अपने मनका समाधान प्राप्त करने लगे । अंग्रेजी भाषामें प्रकाशित जैनधर्मकी किताबें जहाँसे भी मिलती वे उन्हें बड़ी दिलचस्पी के साथ पढ़ने लगे । इसके परिणाम स्वरूप उनके हृदयमें अब दृढ़ श्रद्धा उत्पन्न हुई है कि अन्य सभी धर्मों से, सर्वज्ञ और वीतराग परमात्मा द्वारा प्रकाशित जैन धर्म ही सवॉंग संपूर्ण है । वे यथाशक्ति जैन - आचारों का पालन करते हैं । प्रत्येक धर्मों के मुख्य-मुख्य ग्रन्थोंका अध्ययन करनेवाले इंग्लेन्ड के सुप्रसिद्ध फिलोसोफर और नाट्यकार बर्नार्ड शोने, महात्मा गांधीजी के सुपुत्र देवदास गांधीके पास, अगले जन्ममें जैन कुलमें जन्म पाने की भावना व्यक्त की थी । प्रायः सर्वधर्मों का सूक्ष्मतासे अध्ययन करने के बाद उनके हृदयमें भी जैन धर्म ही सर्व श्रेष्ठ होने की दृढ़ प्रतीति हुई थी । अन्य भी अनेक तटस्थ जैनेतर विद्वानोंने जैनधर्मके विषयमें बहुत ऊँचे अभिप्राय व्यक्त किये हैं । तब महान् पुण्योदयसे जैनकुलोत्पन्न प्रत्येक आत्माओंका कर्तव्य है कि अत्यंत जिज्ञासा और पुरुषार्थपूर्वक जैनशासन के सिद्धांतों का अभ्यास करके अचिंत्य चिंतामणि रत्नसे भी अधिक महिमाशाली ऐसे श्री जिनशासन के प्रति बोधयुक्त श्रद्धासंपन्न होकर उसकी उपासना द्वारा देवदुर्लभ मनुष्य जन्मको सफल बनायें ।
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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