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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग ५१ दर्शन करते हुए प्रार्थना करते हैं कि ' हे भगवान ! मुझे अधिक पैसे मत देना क्योंकि पैसोंके बढ़ने से पाप भी बढ़ते हैं ।' - १ अत्यंत आनंद के साथ उनके मुखमें से ऐसे उद्गार भी सहज रूपसे निकल पड़े कि ' महाराज साहब ! इस दुनियामें मेरे जैसा सुखी शायद कोई नहीं होगा' । करोड़ों रुपये एवं टी. वी. सेट, सोफा सेट, केसेट आदि अनेकविध आधुनिक सुख सामग्री के सेटों के बीच वातानुकूलित फ्लेटमें रहने के बावजूद भी 'अपसेट' मनवाले लोगोंको, सच्चे अर्थमें सुखी होनेका कीमिया सीखने के लिए पीतांबरदास जैसे विशिष्ट व्यक्ति से मिलना चाहिए । पता : पीतांबरदास मोची, जैन स्थानक के पास, १७ मु.पो. ता. लखतर, जि. सुरेन्द्रनगर (गुजरात) पिन : ३८२७७५ (पीतांबरदास का बहुमान करने के लिए मणिनगर एवं शंखेश्वरसे उनको निमंत्रण भेजा गया था, मगर मान-सन्मान से दूर रहनेकी भावनासे, निःस्पृही पीतांबरदास ने उस निमंत्रण का सविनय अस्वीकार करते हुए लोक मानसमें अपना स्थान और भी उन्नत बना लिया ।) भाग्यशाली भंगीकी भव्य - भावना आजसे करीब २० साल पहले की बात है । धर्मचक्र तप प्रभावक प. पू. पंन्यास प्रवर श्री जगवल्लभविजयजी म.सा. अहमदाबादमें गिरिधरनगर जैन संघके उपाश्रयमें व्याख्यान कर रहे थे । उस समय उपाश्रयमें जगह होने पर भी एक भाई उपाश्रयके प्रवेश द्वारके पास बाहर पायदान पर एक तरफ बैठकर अत्यंत अहोभावपूर्वक व्याख्यान सुन रहे थे । महाराज साहब की दृष्टि अचानक उनके ऊपर पड़ी और प्रवचन पूर्ण होने के बाद उन्होंने उपाश्रय के बाहर बैठकर प्रवचन सुननेका कारण
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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