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________________ ४८ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ पर्युषण के आठों दिन पक्खी पालनेवाले कांयाभाई लाखाभाई माहेश्वरी । चातुमासिक सत्संग सा. के समुदायके सा. प.पू. आचार्य : कच्छ केसरी, अचलगच्छाधिपति, प.पू. आचार्य भगवंत श्री गुणसागरसूरीश्वरजी म.सा. के समुदायके सा. श्री पूर्णानंद श्री जी आदि के चातुर्मासिक सत्संग से पिछले ९ सालसे जैन धर्मकी आराधना करते हुए कांयाभाई (उ.व. ७०) का जीवन सचमुच अत्यंत प्रेरणादायक एवं अनुमोदनीय है। सं. २०४८ में हमारा चातुर्मास कच्छ-बिदड़ा गाँवमें हुआ तब कांयाभाई की जीवनचर्या को नजदीक से देखने का हमें मौका मिला । चातुर्मास के दौरान वे प्रतिदिन २ टाईम प्रवचन-श्रवण के लिए अचूक आते थे । प्रवचनमें सामायिक लेकर बैठने की प्रेरणा को उन्होंने तात्कालिक स्वीकार की । हररोज दैवसिक प्रतिक्रमण समूहमें करते थे। प्रतिदिन जिनमंदिरमें जाकर प्रभुदर्शन करने के बाद मंदिर के भंडारमें वे यथाशक्ति द्रव्य अचूक डालते हैं । प्रतिदिन उभयकाल गुरुवंदन करते थे । क्वचित् अनिवार्य संयोगवशात् दिनमें गुरुवंदन नहीं हुए हों तो वे रात को सोने से पहले अचूक उपाश्रयमें आकर त्रिकाल वंदन करते थे। चातुर्मासमें प्रायः प्रत्येक सामूहिक तपश्चर्यामें कांयाभाई का नाम अचूक होता ही था । वर्धमान आयंबिल तपका थड़ा (नीव) बांधा । अठ्ठम किया । केश-लुंचन भी सहर्ष करवाया । पर्युषण के आठों दिन तक पक्खी पालते हैं । खेतमें नहीं जाते । आरंभ समारंभ नहीं करते । उनके घरके कोई भी सदस्य अभक्ष्य भक्षण नहीं करते । अपने उपकारी साधु-साध्वीजी भगवंत जहाँ भी होते, वहाँ वे पर्युषण के बाद वंदन करने के लिए अवश्य जाते हैं ।
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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