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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ ४६ एवं असंख्य मछलियों को बचाया । मंगाभाई अपने संसर्गमें आनेवाले राजपूत, ठाकोर, पटेल, रबारी, वाघरी इत्यादि जातियों के लोगों के साथ इस प्रकारकी धर्मचर्चा करते कि वे लोग भी शराब, मांसाहार और जीव हिंसा का त्याग करने लगे । धन्य है श्राविका मंजुबाईको, कि जिन्होंने मंगाभाई के जीवनमें जीवदया का ऐसा मंगलदीप प्रज्वलित किया कि जिस दीपकने कई लोगों के जीवनमें से जीवहिंसा का अंधकार दूर किया । मंगाभाई की एक सुपुत्री और तीन पौत्रियोंने जैन साध्वीजी के पास दीक्षा अंगीकार की है ! और दो प्रपौत्रियाँ संयमकी भावना से साध्वीजीके पास धार्मिक अभ्यास कर रही हैं । जिनका विशेष वर्णन निम्नोक्त प्रकार से है । मंगाभाई की सुपुत्री कमुबाई प.पू. आचार्य भगवंत श्री नीतिसूरीश्वरजी म.सा. के समुदाय के पू. सा. श्री वसंतश्री जी म.सा. की शिष्या पू. सा. श्री किरणमाला श्रीजी के रूपमें अनुमोदनीय संयम का पालन कर रही हैं । उन्होंने संस्कृत आदिका सुंदर अध्ययन किया है । सेंकड़ों स्तुति-स्तवन आदि कंठस्थ किये हैं । कंठ भी सुमधुर है । 1 मंगाभाई के तीन पुत्र हैं । उनमें से ज्येष्ठ पुत्र रणछोड़भाई की दो बेटियाँ गौरीबेन और लक्ष्मीबेन उपर्युक्त सा. श्री किरणमाला श्रीजी की शिष्याएँ बनकर अनुक्रमसे पू. सा. श्री पावनप्रज्ञाश्रीजी और पू. सा. श्री अक्षयप्रज्ञाश्रीजी के नामसे सुंदर संयम का पालन कर रही हैं । मंगाभाई के द्वितीय पुत्र चकुभाईकी सुपुत्री तरलाबेन भी संसारपक्षमें पाटड़ी के निवासी पू. सा. श्री जयमाला श्रीजी की शिष्या पू. सा. श्री तत्त्वशीला श्रीजी के नामसे रत्नत्रयीकी सुंदर आराधना कर रही हैं । मंगाभाई के पौत्र फरसुराम चकुभाई की दो सुपुत्रियाँ रेखा और रक्षा उपर्युक्त पू. सा. श्री तत्त्वशीला श्रीजी के पास संयमकी भावना से - धार्मिक अध्ययन कर रही हैं । मंगाभाई का परिवार पाटड़ी गाँव के प्रवेश द्वार के बाहर रहता
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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