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________________ - जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? के बावजूद भी मैं कषायों की गुलामी न छोड़ सका। परन्तु आज कोई धन्य समय में पंच परमेष्ठी भगवन्तों की अचिंत्य कृपा से हम दोनों को अपनी भूल का ख्याल आया और हम तुम्हें 'खमाने' के लिए आने की | तैयारी करते थे, वहीं तो अप्रत्याशित रूप से तुम दोनों यहां आ पहुंचे। खैर, जागे तब से सवेरा, और भूले वहां से दुबारा गिनें' इस उक्ति के अनुसार भूतकाल को भूलकर आपस में हिलमिल कर रहने की शुरुआत करें। कहा भी है कि, 'सुबह का भूला अगर शाम को घर वापिस लौटता है, तो उसे भूला नहीं कहते। आज का भोजन हम साथ मिलकर यहीं करेंगे।' और दोनों देवरानी-जेठानी सगी बहिनों की तरह हिल-मिल कर रसोई बनाने लगीं। हम सभी ने प्रेमपूर्वक एक दूसरे को खिलाकर खाना खाया। उसके बाद छोटे भाई ने कहा, 'बड़े भैया! आपने मेरे पर कई उपकार किये हैं, उसी प्रकार अभी भी एक उपकार करना है।' ___मैंने कहा, "मैंने कोई उपकार नहीं किया, मात्र अपना फर्ज अदा करने का प्रयत्न किया है और आज से लेकर मेरे जैसा काई भी कार्य हो तो निःसंकोच मुझे बताना।" छोटे भाई ने कहा,"आप जानते हो कि मेरा बेटा अब उम्र लायक हुआ है। बहुत कोशिस करने के बावजूद भी उसके लिए कोई कन्या देने के लिए तैयार नहीं, इसलिए अब यह कार्य आपको ही करना है। मैंने कहा, "भले मैं कोशिस करुंगा' और आपको बताते हुए आनन्द होता है कि हम दोनों के बीच समझौता होने की बात चारों और फैलते ही दस दिनों में ही सामने से योग्य कन्या का प्रस्ताव आया और मैंने उसे स्वीकार कर लिया। दोनों का विवाह होने की तैयारी है। वास्तव में आप मुझे न मिले होते, तो मैं अचिंत्य चिंतामणी नवकार महामंत्र के ऊपर श्रद्धा खो बैठता और कौन जाने बैर की आग में जलकर मेरी आत्मा कौन सी दुर्गति की अधिकारी बन जाती! वास्तव में आप मेरे परम उपकारी गुरु हो..!
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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