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________________ -जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? से सभी को समझाकर भारत वापिस आने की पूर्व तैयारी प्रारंभ की। शुभ दिन में दो बेटियों एवं श्राविका के साथ भारत की ओर प्रयाण किया। मैंने उसी समय मन में दृढ़ निश्चय किया कि-'भारत की धरती पर पैर रखते ही वासना एवं आसक्ति को एकदम तिलांजलि न दे सकू तो भी जरुरी मर्यादाओं को विरति धर्म के विशिष्ट पालन से तय कर लेना है।'' पूरे प्रवास के दौरान धार्मिक जीवन के साथ संबंध जोड़ने की सुंदर योजनाएँ श्राविका के साथ विचार कर तय की। मुंबई बंदरगाह पर स्टीमर जब किनारे पर पहुँची, तो मैंने तुरंत | भारत की भूमि को अत्यंत भावपूर्वक नमन किया। मैंने एवं श्राविका ने भारत की भूमि पर पैर रखते ही ईशान कोण (दिशा) में सीमंधर स्वामी परमात्मा को साक्षी रखकर भावपूर्वक घुटने टिकाकर, नमस्कार कर धर्मशासन की छत्र छाया के नीचे जीवन जीने का दृढ़ संकल्प किया। मुझे आज तक जिन अभक्ष्य पदार्थों को खाने से मजा आता था, शरीर का पोषण मानकर मैं खूब आनंदित होता था, अब उन्हीं में नरक के भंयकर दुःख मानकर उन्हें आत्मा के शोषक मानने लगा। इसलिए तीव्र पश्चात्ताप के भाव के साथ अनंतकाय आदि अभक्ष्य पदार्थों का एकदम यावज्जीव त्याग कर दिया। उसी प्रकार सात व्यसन, रात्रि भोजन, अभक्ष्य, अचार, आदि पापों का भी पच्चक्खाण श्री सीमंधर स्वामी परमात्मा की साक्षी में लिया। मुझे लेने आये परिजन (संबंधी) समझे कि डॉ. झवेरी और उनकी पत्नी कितने विनीत हैं कि हमारे पैर छू रहे हैं। किंतु वास्तव में हम दोनों संसारी जीवन को धर्म के पंथ पर चढ़ाने की पूर्व-भूमिका का निर्माण कर रहे थे। पालनपुर आकर परमोपकारी, भाववात्सल्य के भंडार एवं जिनके डंडे की मार के डर से प्राप्त किये धार्मिक शिक्षण की बदौलत इंग्लैण्ड जैसी म्लेच्छ धरती में वेदना के सागर में भी श्री नवकार महामंत्र का स्मरण द्रव्य एवं भाव समाधिजनक हुआ, वे दादाजी जीवित नहीं थे, इसलिए 52
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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