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________________ -जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - बिना मेरी छोटी-बड़ी सभी जरुरतें खड़े पैर, उमंग के साथ पूरी करने लगी। साथ ही साथ मेरे अंतर की जगी हुई दृष्टि के अनुसार जीवन को संयमी बनाने हेतु समझाती और अज्ञान दशा में किये गये पापों की गहीं-निंदा करने हेतु जाग्रत करती थी। बीमारी से पूर्व भी श्राविका मुझे अक्सर यह सब बातें समझाती, किंतु उस समय मेरी अंतरात्मा मोह के आवरण से वासना के माहौल में विवेक शून्य बनने के कारण, यह सब टिक टिक रूप लगता, जिससे अधिकांश बार तो आंखों के आगे कान करता, केवल पत्नी के प्रति राग के कारण सामने जवाब नहीं देता था। किंतु अब मुझे श्राविका के अन्तर में मेरी आत्मा को दुर्गति से बचाने के लिए, भाव वात्सल्य का अनुभव होने लगा। जिससे मैं प्लास्टर में जकड़ी हुई स्थिति में भी श्राविका की सूचना के अनुसार मानसिक रूप से धार्मिक जीवन जीने की तैयारी करने लगा। श्री नवकार महामंत्र के निरंतर स्मरण एवं किये हुए पापों की गर्दा, आत्मचिंतन और कर्तव्य की जागृति आदि में मेरी तत्परता बढ़ती गई। उस समय मेरी स्थिति ऐसी थी कि चम्मच भी उठाना मेरे लिए मुश्किल था, जब कि एक समय ऐसा था, कि दो युवान आदमियों को कंधों पर बिठाकर पहाड़ पर चढ़ सकता और उतर सकता था। मुझे जीवन में साक्षात् अनुभव हुआ कि औदयिक भाव का शरीरबल धर्मबल से ही टिकता है, फालतु मद-अभिमान का कोई अर्थ नहीं!!! दुनिया में कहा जाता है कि, 'जो होता है वह अच्छे के लिए होता है।' उसी के अनुसार मुझे प्लास्टर की अवस्था में चिंतन और आत्मगर्दा करने का अधिक समय मिला, परिणामस्वरूप विवेक दृष्टि की कक्षा ऊँची होने लगी। जिससे मुझे 'सच्ची भूख में भोजन का सच्चा स्वाद' की तरह मेरे जीवन को शादी के प्रथम दिन से ही धार्मिक दृष्टिकोण देने के लिए प्रयत्नशील श्राविका के आज तक की सूचनाओं की अवगणना की भूल वास्तव में पीड़ा देने लगी। 49
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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