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________________ - जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? जन्म से चार अतिशय (1) अद्भुत रूप (2) सुगंधित श्वासोच्छ्वास (3) रुधिर एव मांस का श्वेत होना (4) आहार-विहार की अदृश्यता केवलज्ञान से 11 अतिशय (5) समवसरण में करोड़ों का समावेश 6. योजनगामिनी वाणी 7. स्व स्व भाषा में परिणमन 8. भामण्डल 9. परमात्मा के प्रभाव से 125 योजन तक पारस्परिक वैर-विरोध शांत हो जाते हैं। 10. 125 योजन में हुए भयंकर रोग परमात्मा के पुण्य प्रभाव से शांत हो जाते हैं। 11. 125 योजन में मारी-मरकी-चूहे आदि के उपद्रव शांत हो जाते हैं। 12. अतिवृष्टि नहीं 13. अनावृष्टि नहीं 14. अकाल निवारण 15. स्वचक्र अर्थात अपने राज्य का, परचक्र अर्थात दूसरे राज्य का भय नहीं देवताकृत 19 अतिशय - 16. सिंहासन 17. चामर 18. छत्र 19. अशोकवृक्ष 20. पुष्प वृष्टि 21. देव दुन्दुभि 22. न्यूनतम एक करोड़ देवता हर समय सानिध्य में उपस्थित 23. स्वर्ण कमल 24. अधोमुखी कण्टक 25. वृक्षों का नमन 26. पक्षी-प्रदक्षिणा 27. ऋतु की अनुकूलता 28. धर्मध्वज 29. सुगन्धित जल (गन्धोदक) वृष्टि 30. अनुकूल पवन 31. समवसरण 32. चतुर्मुख रचना 33. केश-रोम की अभिवृद्धि नहीं 34. धर्मचक्र । इस प्रकार आठ प्रातिहार्य और चार अतिशय मिलकर श्री अरिहंत |भगवान के 12 गुण हुए। उपरोक्त 34 अतिशयों का समावेश 12 गुणों में हो जाता है। सिद्ध भगवान एवं उनके आठ गुण- जिन्होंने आठ कर्मों का क्षय करके अंतिम साध्य साधकर मोक्ष पद प्राप्त किया है, उसे सिद्ध 1 परमात्मा कहते हैं। उनके आठ गुण निम्नलिखित हैं। . अनन्तज्ञान - ज्ञानावरणीय कर्म का पूर्णतया क्षय होने से अंत रहित केवलज्ञान प्राप्त होता है। उससे वे पूरे लोकालोक का स्वरूप समस्त प्रकारों से जानते हैं। 396
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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