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________________ -जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? का तथा सम्पूर्ण नवकार के स्मरण से 500 सागरोपम के पाप नष्ट होते हैं, क्या वह नवकार मुझे स्वस्थ नहीं कर सकता! मेरी पीड़ा तो है ही क्या! उसने तो सुदर्शन की शूली को सिंहासन बना दिया, नाग को फूलों की माला में परिवर्तित कर दिया। आज तक अनंत आत्माएं इसके ही स्मरण से शिव रमणी का वरण कर चुकी हैं। मुझे भी नवकार मैया की गोदी में अपना जीवन समर्पित कर देना चाहिए।" पूज्य श्री नवकार के जाप में एकाकार हो गये। उन्होंने साथ में अपनी वर्धमान तप की ओली भी प्रारम्भ कर दी। इस प्रकार उन्होंने वर्धमान तप की सौ ओलियाँ पूर्ण कर दी। संवत 2048 तक उनकी आवाज एकदम साफ हो गई। आज उसी नवकार के प्रभाव से ही पूज्य श्री हमारे बीच में तप धर्म का एक उत्ष्ट आलंबन पेश कर रहे हैं। उनका नवकार के साथ आयंबिल प्रेम दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। उन्होंने वर्धमान तप की 110 ओलियां पूर्ण कर लीं, किन्तु अभी तक इनकी तप पिपासा शान्त नहीं हुई। इससे पूर्व भी पूज्य श्री के शरीर पर हार्ट का हमला हुआ था। उस समय भी पूज्य श्री नवकार के प्रभाव से ही बच पाये थे। पूज्य श्री की 108 वीं ओली के पारणे के महोत्सव पर एक भाई द्वारा बाड़मेर में पूज्य श्री के विषय में बोले गये कविता के दो अंतरों को तो मैं आज भी भूला नहीं पायी हूँ।" तप त्याग की अनुपम देवी, अरुणोदयश्री कहलाती हो। जिन शासन श्रृंगार आर्या, आप श्री तो महान हों(1) कर्म राजा के सामने भिड़कर, नवकार मंत्र का बह्मास्त्र फेंका। लज्जित होकर कर्मराज भी, इज्जत बचाने को भागा।।(2) ॐ शांतिः-शांतिः-शांतिः लेखिका-सा.श्री हिरण्यगुणाश्रीजी 383
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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