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________________ -जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - 10 मिनट के बाद जो ट्रेन आयी, मैं उसमें चढ़ गयी। ज्यों त्यों खड़े रह पायी। छोटी शिल्पा को अन्दर घुटन होने लगी, उसके छोटे पैरों पर किसी का पैर आ गया। वह रोने लगी। मैंने उसे अपने हाथों पर उठा लिया। उसे थोड़ा ठीक लगा। मेरे गले के पीछे उसका एक हाथ था। पता नहीं क्या हुआ। अचानक मेरे पास में कॉलेज में पढ़ने वाली एक लड़की खड़ी थी। उसने कहा, 'आपकी माला टूट गयी है और उसमें से मोती नीचे गिर रहे हैं।' अब तो माला को गले से निकाल कर पर्स में रखना होगा, ऐसा सोचकर मैंने माला को निकालने के लिए पीछे हाथ किया। इतने में हीरे का पेन्डल माला से छूट गया और पल भर में नीचे गिर गया। मैं इतनी परेशान हो गयी कि क्या करूं? कैसे नीचे झुकुं? ट्रेन तेज | रफ्तार से जा रही थी। सब औरतें एक दूसरे से चिपक-चिपक कर खड़ी थीं। ऐसी भीड़ में मेरे लिए झुकने की जगह नहीं थी। मैं कुछ सोचुं उससे पहले ही मन में इतनी तेजी से नवकार महामंत्र का पहला पद आया। कहाँ से झुकने की हिम्मत आयी, शिल्पा को मेरे हाथों से उस लड़की ने कब उठा लिया- कुछ मालूम नहीं। यकीन कीजिए मैं जोर से "नमो अरिहंताणं" बोलकर नीचे झकी। सबके जोरों से धक्के लग रहे थे। खब मुश्किल था, नीचे हीरे का मिलना- किसी का पैर भी ऊपर आ सकता था। आजूबाजू की औरतें जानबूझ कर मुझे धक्का दे रही थीं। मगर नवकार मंत्र के प्रभाव से मेरे हाथों में वह हीरे का पेण्डल आ गया। इसी बीच घाटकोपर स्टेशन आ गया, लेकिन में शिल्पा को लेकर उतर नहीं पायी।, गाड़ी में खूब जगह खाली रह गयी। बिखरे हुए मोतियों को बटोरने के लिए कॉलेजियन लड़की ने मेरी मदद की और कहा, 'आप विक्रोली उतर जाओ। मैं मुलुंड में रहती हूं। यह मेरा नाम है और मैं घाटकोपर के झुनझुनवाला कॉलेज में पढ़ती हूँ। क्रिसमस की छुट्टियों के बाद मिलना, आपके बाकी के मोती में लेकर आऊंगी। आप अंदाजा लगा सकते हैं, मेरे होश उस वक्त कैसे रहे होंगे। काफी अंधेरा हो गया था, टेक्सी से घाटकोपर आते वक्त खूब डरी हुई थी। जो घटना घटी उससे में इतनी घबरा गई थी कि डर के मारे में दो 378
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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