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________________ - जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? सोचता था। मैं आर्त और रौद्रध्यान के मध्य जीवन बीताता था। उस समय | मुझे एक कल्याणमित्र मिल गया। उसने मुझे व्याख्यान में आने की प्रेरणा दी। मैं व्याख्यान सुनने के लिए जाने लगा। उसमें से मुझे बहुत मार्गदर्शन मिला। ___ मुझे इस प्रकार द्रव्य एवं भाव दोनों प्रकार से नवकार ने नया जीवन दिया। मेरा पूरा विकास इसी की बदौलत हुआ। इसी कारण मैं नवकार को ही अपना सर्वस्व मानता हूँ। मैं सुबह-शाम भावना करने से पूर्व नवकार का लक्ष्य रखकर एक श्लोक बोलकर नवकार के प्रति अपने | भाव व्यक्त करता हूँ। यह रहा श्लोक त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव। त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्व मम देव देव।। अर्थ : मेरे लिए माता, पिता भाई, मित्र, विद्या, धन सब तुम ही हो अर्थात् यह सब मिलकर जिन अपेक्षाओं की पूर्ति करते हैं, वह सब मेरी अपेक्षाएं तुझ से ही पूर्ण हो जाती हैं। नवकार साधना की सही प्रक्रिया ___ श्री गुलाबचन्द भाई को नवकार की साधना और उसकी सही प्रक्रिया अचानक प्राप्त हो गयी। इसी कारण नवकार, उनके लिए अचिंतचिंतामणि बन गया। उन्होंने तो मात्र सद्गति की ही इच्छा की थी, परन्तु नवकार ने तो बिना मांगे ही उन्हें सभी अनुकूलताएं उपलब्ध करवा दीं। इनकी नवकार की साधना शीघ्र फलदायी बनी इसमें इनकी साधना प्रक्रिया के निम्न अंगों का महत्त्व लगता है1 "नवकार ईष्टसाधक है" ऐसी दृढ़ श्रद्धा। 2 सभी के साथ हदय पूर्वक की गई क्षमापना और मैत्री आदि भावना से शुद्ध हुई मन की भूमिका। 3 अरिहंत का रात-दिन रटन। 4 मन पर सतत पहरेदारी। 13
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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