SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 391
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ • जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ? फलस्वरूप मेरे अन्तरमन में जैन श्रमण बनने की इच्छा जाग्रत हुई। मैंने यह विचार गुरुदेव की सेवा मे रखे । साथ में उनको यह भी कह दिया कि मैं जैन धर्म के विषय में कुछ भी नहीं जानता हूँ। गुरुदेव ने फरमाया- हम तुम्हें पूर्ण रूपेण अध्ययन का संयोग देंगे। गुरुदेव ने अपना चातुर्मास पूर्ण कर के आंध्रप्रदेश की ओर विहार किया। न तो कभी गुरुदेव ने पत्र दिया, न कोई सूचना । किन्तु दीक्षा की प्रबल इच्छा के कारण मैं बिना किसी के कहे अपने घर से निकल चुका। न तो मुझे किसी ट्रेन का ज्ञान था, न मुझे गुरुदेव कहां विराजते हैं, इसका ज्ञान था। किंतु महामंत्र पर पूर्ण आस्था थी । अतः जिस गाड़ी में बैठता वह मुझे गुरुदेव के चरणों में पहुंचा देती। यह सब नवकार मंत्र की देन थी । इस समय मेरी उम्र लगभग 12-13 वर्ष के आसपास होगी। जब परिवार वालों को ज्ञात होता तो वे लेने के लिए पहुँच जाते, यह क्रम लगभग 7 बार चला। एक समय की बात है कि जब मैं धूप से स्टेशन की ओर चल दिया। चन्द मिनटों में परिजन भी वहीं पहुंच गये। इतने में ट्रेन आ गयी। मैं बिना टिकट ही ट्रेन में बैठा हुआ उन्हें देख रहा था। मन ही मन नवकार मंत्र का स्मरण करता रहा। आप आश्चर्य न करें, वे मुझे नहीं देख सके। यह है " महामंत्र नवकार का अद्भुत चमत्कार।" नेत्रज्योति दाता महामंत्र वि.सं. 2031 की बात है कि पूज्य गुरुदेव मेवाड़भूषण धर्मसुधाकर श्री प्रतापमलजी महाराज अपना यशस्वी चातुर्मास मालव की धर्मनिष्ठ नगरी इन्दौर में चातुर्मास पूर्ण करके आप श्री के चरण सरोज महाराष्ट्र की भूमि को पावन करने के लिए गतिशील थे। इन्दौर से गुरुप्रवर आदि मुनि मण्डल का विहार बड़वाह की ओर हुआ। मुनि मण्डल चन्द दिनों में ही बड़वाह की ओर पधार चुका। कुछ दिन विश्राम करके विहार करने का ही विचार था कि अचानक पूज्य 364
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy