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________________ -जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? था। भागीदारी में हमारा 70 प्रतिशत हिस्सा था। जबकि उन श्रीमंत परिवार का 30 प्रतिशत हिस्सा था। सन् 1975 में उन्होंने कहा कि हमारा हिस्सा 30 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत करो तो ही हम भागीदारी जारी रखेंगे। हमने उनकी बात अस्वीकार की, क्योंकि व्यवसाय संबंधी पूरी जिम्मेदारी हमारी थी। उनकी भागीदारी केवल रकम के विनियोजन के कारण थी। वैसे भी उनकी रकम पर 12 प्रतिशत सूद दिया जाता था। हमने उन्हें सप्ताह में जवाब देने को कहा। सप्ताह के दौरान सवेरे दूसरे किसी के पास से रकम लाकर व्यवसाय चालु रखना पड़े। इस प्रकार हमारे परिवार पर बड़ी आफत आ गयी। मैं इस मुश्किल से मुक्ति पाने हेतु नवकार मंत्र का स्मरण करता रहा। सप्ताह भर बाद जब भागीदारों की बैठक हुई तब उन्होंने सामने से कहा, "हम प्रेम से अलग होवें। तुम हमारा हिसाब दीपावली तक पूरा कर लेना। मुझे मेरी रकम सूद सहित | धीरे-धीरे तुम्हारी सुविधा अनुसार देना। हमें ख्याति (Good Wil) के बदले में कोई रकम नहीं चाहिये। तुम सुखी बनो और प्रगति करो, यही शुभकामना।" हमें सचमुच आनन्द हुआ। मैंने सोचा कि यह कैसा चमत्कार! अलग होने के 6 माह बाद कागज के भाव बढ़ गये। परन्तु हमारी पेढ़ी की 200 टन कागज की पुरानी मांग सरकार की तरफ से मंजूर हो गयी। यह माल हमें चार रुपये किलो मिला, जबकि उसका बाजार भाव आठ रूपये किलो था। इसी साल हमने उस श्रीमंत की रकम सूद सहित चुका दी। हमको अब रकम की ज्यादा आवश्यकता नहीं थी। क्योंकि अभ्यास पुस्तिकाओं की मांग के साथ व्यापारी अग्रिम रकम दे जाते थे। इस प्रकार मेरी नवकार के प्रति श्रद्धा और ज्यादा गहरी हो गई। (2) दूसरी घटना है, सन् 1980 में मेरी पूज्य माताजी को डायाबिटीस एवं रक्तचाप की महाव्याधि थी। नियमित दवा एवं इन्जेक्शन चालु थे। अचानक रक्तचाप बढ़ने से वा.सा. अस्पताल में तुरन्त दाखिल किया गया। अस्पताल में एक नर्स द्वारा गलत इंजेक्शन देने से मेरी 316
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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