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________________ -जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? का जाप किया होगा कि मेरे चक्कर एकदम समाप्त हो गये। मैं पहले की तरह स्वस्थ हो गया। मैंने फिर भी नवकार मंत्र तो चालु ही रखा। थोड़ी देर में वे एक स्टेशन पर उतर गये। मुझे उनके जाने के बाद ख्याल आया कि वे तांत्रिक थे और मुझे लूटने के इरादे से मेरे ऊपर त्राटक कर रहे थे। मैं भी बोरीबन्दर स्टेशन आते उतर गया। किन्तु मन में एक पक्की मान्यता बैठ गयी कि आज नवकार मंत्र के प्रभाव से ही बच सका हूँ। ऐसी दूसरी घटना चारेक वर्ष पहले घटी थी। तब मेरा पुत्र रूपारेल कॉलेज में से अच्छे अंकों के साथ एच.एस.सी. की परीक्षा में उत्तीर्ण हुआ था। उसे इन्जीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश लेने के लिए डोमेसाईल प्रमाणपत्र लेना पड़ता था। मैंने इस डोमेसाइल प्रमाणपत्र के लिए कुर्ला कोर्ट के एक वकील को तय किया। कुर्ला कोर्ट के वकील ने कहा था कि प्रमाण-पत्र लगभग पन्द्रह दिन में मिल जायेगा। लेकिन पन्द्रह दिन के बदले बीस दिन तक प्रमाणपत्र नहीं मिला और इस दौरान वकील दूसरे गांव चला गया था। वह तो अपने कार्य हेतु दूसरे गांव चला गया। जैसे-जैसे कॉलेज खुलने के दिन नजदीक आते गये, वैसे-वैसे मेरे मन में चिंता बढ़ने लगी, क्योंकि कॉलेज प्रारंभ होने के साथ ही प्रवेश कार्य के साथ डोमेसाईल प्रमाण-पत्र न हो तो मेरे पुत्र को प्रवेश नहीं मिले और मेरा पुत्र भटक जाये। परन्तु मुझे नवकार मंत्र पूरी श्रद्धा थी। इस कारण मैं तो रात-दिन नवकार मंत्र का जाप श्रद्धापूर्वक करता था। कॉलेज शुरू होने में दो दिन की देरी थी और में बस से कुर्ला कोर्ट के पास वकील की तलाश करने निकला। मेरा बस में भी श्रद्धापूर्वक नवकार मंत्र का जाप चालु ही था। और मेरे आनन्द, आश्चर्य के बीच बस से उतरते ही वकील किसी आदमी से बातें करता मिला। मुझे देखकर उसने मुस्कुराकर कहा कि, 'मैं तुम्हारी राह देख रहा था। उसने कहा, "मुझे दूसरे गांव से आने में देरी हो गयी और आपको तकलीफ हुई इस कारण क्षमा करना।" ऐसा कहकर उसने मुझे प्रमाण-पत्र दिया। मुझे प्रमाण-पत्र हाथ में लेते हुए मन में अपूर्व आनन्द और एक प्रकार की शान्ति अनुभव हुई कि अब मेरे पुत्र को कॉलेज में प्रवेश मिल जाएगा। यह प्रमाण-पत्र नहीं मिलने पर उसे 314
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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