SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 329
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ? मैं आसपास नजर घुमाये बिना जल्दी से दौड़ रहा था, मैं पूरी गति से दौड़ रहा था। ऐसे समय मेरे दौड़ने के मार्ग में एक जहरीला नाग डेढ़ फीट उंची फण कर मस्ती से डोल रहा था। मैंने उसे देखा तब तक बहुत देरी हो चुकी थी। मैं पूरे जोर से दौड़ रहा था, इसलिए रुकने पर सीधा नाग के उपर गिरुं ऐसी स्थिति में था । आडा-तिरछा खिसकने का समय नहीं था। उससे एक पल के सौवें हिस्से में निर्णय कर, नाग से केवल डेढ़ या दो फीट के अन्तर से ऊँची कूद लगायी। मेरा एक पैर सांप के फण से दो इन्च की दूरी पर से निकल गया था। मैं भयभीत बन गया था। इस जहरीले सांप ने सहज ही अपनी फण उंची की होती तो मुझे डंश देने के स्थिति में था । परन्तु उसने ऐसा कुछ नहीं किया, सहज रूप से भयभीत बने बिना वाइपर कक्षा का यह नाग पहले जैसी अपनी मस्ती में फण हिलाकर डोल रहा था। मैं भयभीत था, लेकिन नाग मस्ती में था। मैं उस समय सांप की श्रेणी के बारे में समझता नहीं था, परन्तु बाद में जीमकोर्बेट नाम के शिकारी की पुस्तक के आधार पर बड़ी उम्र में मुझे पता चला कि जिस सांप के उपर से में कूदा था, वह सांप 'वाइपर' कक्षा का जहरीला नाग था। जिसके एक दंश से आदमी सौ कदम आगे नहीं दौड़ सके और एक ही पल में मौत की शरण में चला जाये। मुझे मेरे उस 21 नवकार गिनकर सोने की आदत ने मौत के मुँह से बचाया, ऐसा मैं आज स्पष्ट रूप से मानता हूँ । (3) पुस्तक जब्त हुई:- तीसरा अनुभव कुछ अलग ही किस्म का है । में 25 से 30 वर्ष की उम्र में साम्यवादी विचारों की असर में था। उससे मैंने जवानी के जोश में साम्यवादी रशियन नेता लेनिन के बारे में एक पुस्तक लिखी। इस पुस्तक में ऐसे कुछ क्रांतिकारी साम्यवादी विचार तो नहीं थे। लेनिन का जीवन चरित्र ही था। परन्तु मेरी पुस्तक छपकर बाहर निकलने की तैयारी में ही थी और वहीं इस पुस्तक की सभी नकलें प्रेस में से जब्त हो गयीं। प्रेसवाले को काफी सहन करना पड़ा। परन्तु मुझे थोड़ी सी आंच भी नहीं आयी। मेरे अरिहंत ने मुझे सरकारी तंत्र के सिकंजे से बचा लिया था। 302
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy