SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 310
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - अनजान रास्ते से हमको वह गांव की ओर ले गया। जब हम गांव के नजदीक पहुंचे, तब हमने भय से मुक्त होकर गहरा श्वास लिया, फिर उस दूध की कावड़वाले आदमी का आभार व्यक्त करने हेतु पीछे देखा तो पीछे न दूध की कावड़ दिखाई दी, ना ही वह आदमी। हमें आश्चर्य हुआ कि वह आदमी अदृश्य कैसे हो गया? हमको लगा कि यह प्रभाव नवकार मंत्र का ही है, कोई देवतत्त्व आकर हमारी रक्षा कर गया। यह प्रसंग हमारे जीवन में प्रथम बार ही बना। तब से हमारी नवकार महामंत्र के ऊपर की श्रद्धा में अधिक और अधिक अभिवृद्धि हुई। हम प्रथमबार "लीलगगन" उपाश्रय (पालीताणा) में चातुर्मास हेतु पधारे। सं. 2038 मैं कार्तिक वद 8 के दिन मुसलाधार बारिस सारा दिन चालु रही। गांव के सभी कामकाज बन्द थे। इलेक्ट्रीक व्यवहार भी खराब हो गया। चातुर्मास हेतु हम तीन ठाणे सा. श्री हरखश्रीजी, सा.श्री | रतनश्रीजी, सा. श्री चन्द्रोदयश्रीजी विराजमान थे। शाम को प्रतिक्रमण करने के बाद लगभग 7 बजे का समय था। उतने में तेजी से हवा चलने लगी। एक ओर वर्षा दूसरी ओर पवन का तूफान पूरे गांव को तहस-नहस कर दे, वैसा लगता था। तूफान के कारण कितने ही पुराने मकान जमीन पर गिर गये। पशुओं के रहने के छपरे उड़ गये, कितने ही बड़े वृक्ष धराशायी हो गये। वर्षा का पानी इकट्रा होकर नदी में बाढ़ आये, वैसे बह रहा था। उसमें कितने ही झोंपड़े बहे जा रहे थे। माल समान एवं पशु-पक्षियों को भी पानी खींचकर ले जा रहा था। .. सभी खिड़कियां बन्द होने के बावजूद पानी कहीं न कहीं से उपाश्रय में घुस आया, उपाश्रय की जमीन पानी से ढक गई। हमको लगा, कहीं हमारे उपाश्रय का मकान धराशायी हो गया तो हमें कौन बचायेगा? भय में भी भय पैदा करे, वैसे उपाश्रय की एक खिड़की बन्द होने के बावजूद निश्चित तरीके से घंटनाद की तरह बज रही थी। घनघोर जंगल में जैसे वृक्षों के पत्तों की खनखनाहट डराती है, वैसे अंधेरी रात और उसमें एक खिड़की की आवाज से ऐसा डर लग रहा था कि रोंगटे 283
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy