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________________ • जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ? विहार नहीं करना है। पू. मुनि श्री तीर्थरत्नसागरजी की बड़ी दीक्षा आबु तीर्थ में होगी। उसके बाद सभी प्रयाण करेंगे।' वह सुनकर मेरे दिल में कितनी शान्ति - कितना आनन्द हुआ होगा उसकी कल्पना करना मुश्किल है । परन्तु यह सारा प्रभाव महामंत्र का ही है। हमने बड़ी दीक्षा पूर्ण होने के बाद पहाड़ से उतरना प्रारम्भ किया। 5 वर्ष की बच्ची इतना चल नहीं सकती, परन्तु एक अक्षय खजाने का अनुभव होने से मुझे जरा भी डर नहीं लगा। बस नवकार मंत्र का स्मरण करते बच्ची को उठाकर पूरा पहाड़ उतर गयी । उसमें मुझे बिल्कुल थकान महसूस नहीं हुई। बल्कि हृदय में किसी अद्भुत प्रसन्नता की अनुभूति हो रही थी। उसके बाद जीरावल्ला पहुंचे। वहाँ नये यात्रिकों को बेच, बिस्तर मिले। तब संघ के उप कन्वीनर श्री किरणभाई ने साफ कह दिया कि, "इतनी छोटी बच्ची संघ में नहीं चलेगी। इसे पहले घर छोड़कर आओ।" सोनल छोटी थी। फिर भी जब से यह घर से निकली, तब से इसे दादा के दर्शन की तीव्र इच्छा जगी हुई थी। वह हमको कहती, 'मम्मी मैं आपके साथ चलूंगी।' पालीताणा दादा के दर्शन करने की इसकी उत्कण्ठा बढ़ती जा रही थी। वह प्रतिदिन भगवान के दर्शन करते प्रार्थना करती, बाल भाषा में कहती कि, 'हे भगवान!' मुझे दादा के दर्शन करवाना। अरे... शाम को आचार्य साहब को वन्दन करने जाती तो वहाँ भी कहती कि " महाराज साहब ! मुझे ऐसे आशीर्वाद दो कि मैं दादा के दर्शन कर सकूं। मैंने बच्ची से कहा कि तू नवकार का रटन करती रहना, तो जरूर दादा के दर्शन होंगे। शंखेश्वर तीर्थ आते ही इसके बालमानस में यह बात ऐसी बैठ गयी थी कि कई बार रात को नींद में भी इसके होठ हिलते तो, " हे दादा-नमो अरिहंताणं... "शब्द निकलते। इस प्रकार हम शंखेश्वर तीर्थ आ पहुंचे। किरण भाई ने कह दिया कि, " आज बच्ची को ' भले ही।" परन्तु मुझे तो चिन्ता होती थी। इस ओर सोनल कहती, "मुझे घर छोड़ आओगे, तो मैं तुम्हें भी जाने नहीं दूंगी।" फिर तो हम दादा के दर्शन करने गये। वहाँ पूजा की और बस, दादा के ध्यान में बैठ भेज देना।" मैंने कहा 44 257
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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