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________________ -जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? में था। हाईवे पर गाड़ियों का यातायात बढ़ा। हमारी बस आगे निकल गयी। पीछे आती बस पीछे रह गयी। वहाँ एकाएक आकाश टूटे, बिजली गिरे वैसी भंयकर धमाके की आवाज कानों के परदे को चीर गयी। देखा तो मैं उछलकर बस के तलिये पर पड़ा था। बस में करूण-क्रन्दन, चिखना, रोना सुनाई दे रहा था। मुझे बस की सलाखा छाती के भाग में एवं घुटने पर लगने से हदय एवं |साथल के भाग में गहरी चोटें आयी थीं। श्वास अद्धर हो गया था। प्राण कंठ में आ गये थे। असह्य वेदना के बीच चेतन चमकता था। एस.टी.बस. एवं सामने से आ रहे ट्रक के टकराने से प्राणनाशक दुर्घटना घटी थी। राह पर खून बह रहा था। कांच के टुकड़े रास्ते में बिखर गये थे। ट्रक एवं बस के टूटे हुए हिस्से उछलकर इधर-उधर पड़े थे। वाहनों का आना जाना रुक गया था। बेहोश एवं चोटग्रस्तों के रुदन ने वातावरण को हिला दिया था। मेरे साथ के प्रोफेसर को काफी चोटें लगी थीं, किन्तु कौन जाने कैसे वे बच गये। उन्होंने मुझे बस से उतारकर जमीन पर सुलाया। वे छाती पर हाथ फेरने और कहने लगे, "तुम्हें कुछ नहीं होगा, ठाकुरजी का स्मरण करो। भगवान अच्छा करेगा। वेदना मिट जाएगी। स्मरण करो।" वेदना ऐसी थी कि, लग रहा था, अभी प्राण पखेरू उड़ जायेंगे। मैंने उनसे कहा, "यह शरीर गिर जाए तो इसे घर पहुंचाना।" भाई ने हिम्मत बंधायी, "तुम्हारा दर्द मिट जाएगा। चिन्ता मत करो। प्रभु का स्मरण करो।" वातावरण में वेदना की चीखे सुनाई दे रही थीं। चारों ओर उदासी फैल गयी थी। विषाद के बादल मंडरा रहे थे। न उठ सकें, न बैठ सकें, न कह सकें, न सह सकें वैसी भयंकर वेदना ने शरीर पर अपना साम्राज्य |जमा दिया था। मौत सामने दिखाई देती थी। किन्तु नवकार का स्मरण इसे चेतावनी देता था। 'कुछ भी नहीं होगा, घबराने की जरूरत नहीं है', अंदर से कोई आश्वासन देता था। उस समय एकाएक एक कार वहाँ से गुजर 225
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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