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________________ - जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? किन्तु दिनांक 2-7 शुक्रवार की सिर्फ एक रात्रि के लिए ही इसी उपाश्रय में बीताने और फिर शनिवार को विहार कर निकट के चिंतामणि पाश्र्वप्रभु के उपाश्रय में बीताकर रविवार को चातुर्मास प्रवेश करना था । सिर्फ एक रात्रि की चिंता थी, इसलिए जहाँ दुर्घटना हुई वहां संथारा न करते हुए सिर्फ तीन चार मीटर ही दूर संथारा किया था । स्थान बदलने का कोई उद्देश्य न था, फिर भी बचना था तो बच गया। ऊपर की सिलिंग गिरी किन्तु न तो कुछ चोट आई न मेरी उपधि या गोचरी के पात्र आदि को क्षति हुई। मिट्टी का ढेर गिरा किन्तु सभी संयम की वस्तु के चारों ओर, जबकि संथारा और सामग्री पर कुछ गिरा तक नहीं। दूसरा, रात्रि को लगभग एक बजे ही नवकारादि जाप किये थे। दुर्घटना के समय भी भयानक कल्पना में भी नवकार को ही स्मरण में लिया है। साथ-साथ आयंबिल का महातप भी था। नवकार जप-आयंबिल तप और ब्रह्मचर्य के खप ने ही संयमजीवन की रक्षा की है, ऐसा खास प्रतीत हो रहा है। सुबह समाचार फैलते ही श्रावक-श्राविकाएं आने लगे और कहने लगे कि, "महाराज साहब, किसी का पुण्य आपके काम में आया है। अच्छा हुआ कि यह सिलिंग न आप पर गिरी, न व्याख्यान के समय या प्रतिक्रमण के समय गिरी किन्तु कोई न था तभी गिरी । " मैं भी मन में सोचने लगा कि सिलिंग को गिरना ही था तो अंधेरी रात्रि के मध्य में न गिरी और प्रातः समय ही गिरी, जबकि रात्रि का विश्राम हो चुका था, कुछ-कुछ उजाला होने से लोग भी जग चुके थे। वरना देखी हुई घटना और की हुई अनुभूति में भयानकता शायद दुर्घटना के बाद भी मन को परेशान कर सकती थी । जो भी हो दिनांक 8-7 रविवार को श्रीसंघ में चातुर्मास प्रवेश बहुत उल्लासमय वातावरण में हो गया और व्याख्यान में ही बीती घटना को याद कर सभासमक्ष प्रस्तुत भी की, जिसे सुनकर अनेक लोग धर्मतत्त्व की श्रद्धा में स्थिर हो गये । 205
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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