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________________ - जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? यात्मयोगी पूज्य आ. श्री विजय कलापूर्णसूरीश्वरजी म.सा. पूज्य मुनि श्री प्रद्योतन वि. (बाद में सूरिजी) आदि मुनि मंडल की शुभ निश्रा में सुन्दर आराधना चल रही थी। तब पूज्य मुनि श्री प्रीतिविजयजी म. ने नवकार मंत्र के जापपूर्वक | 62 वीं ओली पूर्ण कर उपवास की तपश्चर्या शुरू की। तीर्थ का स्थान अतिरमणीय है। चारों ओर पर्वत की हारमाला में बसा हुआ राता महावीर तीर्थ देखते ही मन को हर लेता है। वह साधना के लिए उत्तम स्थान है। | यह तीर्थ लोगों के शोर से कोसों दूर है। पू. प्रीति वि. म. उपवास के दौरान पूरा दिन भगवान के पास जाप में ही लीन रहते थे। ऐसे तीर्थ और ऐसे साधक महापुरुषों की निश्रा से जाप में उत्तरोत्तर स्थिरता बढ़ती जा रही थी। पूज्य श्री को 11 वें उपवास की रात के समय कुछ अवर्णनीय आनंद का अनुभव हुआ। वे एकाएक बड़ी आवाज से नवकार गिनने लग गये। सभी साधु जाग्रत हो गये। पंन्यासजी एवं सूरिजी भी जाग गए। उन्होंने पूछा "क्या कर रहे हो? नवकार मन में गिनो, बड़ी आवाज से क्यों गिनतो हो?'' "आपकी बात सही है, किंतु अंदर से नवकार की 'ध्वनि' का आनंद इतना सारा उमड़ रहा है कि मैं रह नहीं सकता। कोई शब्द ही नहीं हैं। इस आनंद का वर्णन करने के लिए। अत्यंत आनंद के आवेश से नवकार मैं नहीं बोलता, किन्तु मेरे से स्वतः ही बोला जा रहा है।" ऐसा कहकर वापिस सरल स्वभावी मुनिश्री 'नमो अरिहंताणं...नमो सिद्धाणं.... नमो आयरियाणं..." ऐसे नवकार बोलते ही रहे। दूसरे दिन दोपहर तक नवकार का उच्चारणपूर्वक जाप चालु ही रहा। पूज्य पंन्यासजी म.सा. ने खुलासा करते हुए बताया कि-"सरल और एकाग्रचित्त से सतत नवकार गिनने से ऐसी कई प्रकार की अनुभूतियां होती हैं। किसी को प्रकाशपुंज के दर्शन होते हैं, किसी को असीम आनन्द का अनुभव होता है। अन्तर्ग्रन्थि का भेद होते ही भवचक्र में अननुभूत आनंद की अनुभूति होते ही साधक आनंद से नाचने लग जाता है। इसमें कोई भी नयी बात नहीं है। 167
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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