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________________ -जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? झाड़ियों में फिर रास्ता भूल गये। बल्कि रास्ता ही नहीं मिला। भयंकर और घने जंगल में अभयारण्य के कारण कोई मानवीय बस्ती नहीं, रास्ता एकदम खराब था। जिस मार्ग से हम जा रहे थे, वहां चार-चार फीट लम्बी घास उगी हुई थी। जैसे-जैसे धीरे-धीरे कछुए की रफ्तार से गाड़ी आगे बढ़ रही थी, वैसे-वैसे जंगल की भयंकरता और बढ़ती जा रही थी। चार कि.मी. आगे बढ़ने के बाद ड्राइवर, मेरे बहनोई-कनुभाई तथा मेरी भी हिम्मत टूटती जा रही थी। घनी झाड़ी, हवा की लहरों के कारण पत्तों की सर्रसर्राहट, पशु-पक्षियों का कलरव, एकदम शांति, हमें दोपहर एक बजे का समय ओर निरूपायता से गाड़ी खड़ी करनी पड़ी। हमें डर था, कहीं किसी भी दिशा में से जंगली प्राणी या वन का राजा आ गया तो! क्या स्थिति होगी? गाड़ी खराब हुई तो? वातावरण में नीरव शून्यता तथा गंभीरता बढ़ती जा रही थी। परिवार के सभी छोटे-बड़े व्यक्तियों के मुख पर ग्लानि तथा डर की रेखाएं छा गई थीं। ऐसे ठंडक भरे वातावरण के बीच में भी पसीने के बिन्दु स्पष्ट नजर आते थे। किसी को किसी से बात करने की रुचि ही नहीं थी। ड्राईवर एवं कनुभाई सेठ नीचे उतरे, शायद कोई आदमी मिल जाये तो पूछ लें कि कनकाई का कौन-सा रास्ता है? मैं भी नीचे उतरा, किन्तु स्त्री वर्ग को अकेले छोड़कर, मुझे रास्ता खोजने जाना उचित नहीं लगा। जिससे मैं गाड़ी के कांच बन्द कर बाहर खड़ा रहा। मैंने परिवार के प्रत्येक स्त्री सदस्यों एवं बालकों को कहा कि - "अब केवल अपने नवकार का सहारा है। सभी छोटे-बड़े नवकार मंत्र चालु कर दो। इसके प्रभाव से कुछ रास्ता निकल जायेगा।" सभी ने एक आवाज से महामंत्र का जाप चालु कर दिया। अरे! पांच वर्ष का अमीश (भानजा) भी आंखें बन्दकर के तेज गति से नवकार मंत्र बोलने लगा। उसी समय थोडे दूर एक झोंपड़ी में से एक किसान जैसा वृद्ध, मेरे बहनोई को मिला और बोला कि, "दायें ओर धीरे-धीरे आगे बढो। आधा कि.मी. जाने के बाद 163
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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