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________________ -जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? इसके शरीर में प्रवेश करने से मुझे रोकते हैं और मुझे वापिस लौट जाना पड़ता है।" किनारे आ पहुँची नाव को बचा लेने की आरजु के साथ फिर विनति हुई- "आप इस प्रकार निराश हो जायें तो कैसे चलेगा? किसी भी प्रकार से आप चमत्कार दिखाइये, ऐसी मेरी अंतर की कामना है। उपाय में कमी हो तो सूचित करावें। हम सब कुछ करने के लिए तैयार हैं।" । भोपे के माध्यम से पुनः उत्तर मिला- "हां, एक उपाय है। यह जैन भाई अपने इष्टदेव का जाप करना बन्द कर दें, यह अपने इष्ट मंत्र का आजीवन त्याग का मुझे वचन दें, तो मेरा अवरोध दूर होगा और मैं इसके शरीर में प्रवेश कर सकूँ । इसके अलावा मेरा चमत्कार देखने का कोई उपाय नहीं। मैं चाहे कितनी भी शक्तिशाली गिनी जाती हूँ, किंतु इस भाई के द्वारा जपे इष्ट मंत्र से उत्पन्न होते तेज वर्तुल मेरी आँखों को अंधी बना देते हैं। इन वर्तुलों को छेदकर मैं आगे जाने में अक्षम बन जाती हूँ। इसलिए यह मेरी शर्त मान्य हो, तो ही में चमत्कार बताने में समर्थ हूँ। बोलो, मान्य है, यह मेरी शर्त?" इस सवाल-जवाब ने जिनदास के हदय में अलग ही प्रकार का निर्णायक मनोमंथन पैदा कर दिया। वह विचारों में चढ़ा, "ओह! चमत्कार तो मेरे घर में ही मेरी प्रतीक्षा कर रहा है और मैं इसकी शोध के लिए इधर उधर भटक रहा हूँ। मेरा नवकार कितना बलवान है कि इसके जप में से निकलती ज्योति ने शक्तिमाता को भी हार दिलायी है। नवकार के प्रति में कोई दृढ़ निष्ठा नहीं रखता, मैंने ऐसी कोई शिक्षा लेकर, नवकार को ही मुद्रालेख नहीं बनाया! खानदान से मिले नवकार की में मात्र एक माला ही जपता हूँ। मेरी श्रद्धा की सीमा केवल इतनी ही है। फिर भी ऐसी नाम मात्र की श्रद्धा भी इस प्रकार का चमत्कार दिखा सकती है, तो नवकार के प्रति मेरी श्रद्धा को यदि समझपूर्वक अपनाऊं, तो मेरा बेड़ा भवसागर से ही पार नहीं हो जायेगा?" चमत्कार प्राप्त करना था किस शक्ति का, और चमत्कार हाथ लग 108
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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