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________________ -जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - विराट ने मजबूर बने हुए मन को भी मनाकर अपना प्रयाण जारी रखा। चलते हुए उसका मन इसी विचार में डूबता था कि, 'महामंत्र के आगे कौन-सी वस्तु असम्भव है। महामंत्र में ऐसी विराट शक्ति छिपी हुई है कि जब वह अन्तर्हित ताकत जगती है, जब उस छिपी हुई विराट शक्ति का ऊर्चीकरण होता है, तब आपत्तियों का पहाड़ हिल जाता है और वह साधक को जाने के लिए रास्ता दे देता है। विराट सोचने लगा, "क्या मेरे जीवन में घटित हुई यह कंपकंपी भरी और रोमांचक घटना इस बात की साक्षी नहीं देती? कहां वह अंधकारमय बस्ती और कहाँ उन लूटेरों की प्राणनाशक भीड़ में जकड़ा हुआ मैं! क्या इस गहरे अंधकार में से उजाले में आना संभव था? क्या इस प्राणनाशक कैद को तोड़-फोड़कर स्वतंत्र होने का स्वप्न में भी संभव था? मगर वह सब साकार होकर खड़ा रहता है, जब महामंत्र रक्षक बनता है।' विराट के कानों में घंटी का मधुर स्वर टकराया। उसने देखा तो खुद देहरी के एकदम पास आ पहुंचा था। एक घटादार वृक्ष की छाया में देहरी खड़ी थी। चार-पांच कदम दूर देहरी का द्वार था। देहरी छोटी, फिर भी रम्य थी। विराट का तन-मन अब विराम चाहता था। इसने देहरी में थोड़ा आराम करने का विचार किया। विराट पंक्तियों पर चढकर चोतरे में आराम करने हेतु बैठ गया। देहरी के चारों ओर का वातावरण खूब ही खुशनुमा था। मंद मंद बहता पवन विराट को आनन्द देता था। विराट का मन इस स्थान को छोड़कर आगे जाना नहीं चाहता था, फिर भी आगे बढ़ने के अलावा कोई सहारा नहीं था। विराट को ख्याल था कि, मंजिल अभी बहुत दूर है और यात्रा भी अभी लम्बी करनी है। वह खड़ा हुआ। चारों ओर का विहंगम दृश्य देखा, तो उसकी नजर दूर-सुदूर से आते हुए एक सिपाही (लूटेरे) पर पड़ी। 101
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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