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________________ • जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ? पर आगे बढ़ा। विराट सरदार के पास आकर खड़ा हुआ। उसने भारी सावधानी से सरदार का कोट पहन लिया और वह सरदार के वेश में सज्ज हो गया। सरदार के सिरहाने के नीचे दबाई हुई एक छोटी सी लकड़ी खूब सावधानी से निकाल ली और पल्ली के द्वार की ओर कदम बढ़ाये । विराट जब द्वार के आगे आकर खड़ा हुआ तब एकदम मध्यरात हुई थी। श्रद्धेय सच्चा हो, श्रद्धा सच्ची हो और साधना भी सच्ची हो, तो श्रद्धेय, श्रद्धा और साधना के त्रिवेणी संगम पर खड़ा साधक सिद्धि के सर्वोच्च शिखर पर अवश्य पहुंचता है ! विराट भी एक ऐसे त्रिवेणी संगम पर खड़ा था, उसका श्रद्धेय महामंत्र था, महामंत्र के प्रति उसकी श्रद्धा अविचल थी और इसकी महामंत्र की साधना भी अविचल थी ! उसे पल्ली में आये तीन दिन व्यतीत हो चुके थे। विराट तीसरे दिन कटिबद्ध बन गया था कि 'किसी भी प्रकार से बस्ती को ठोकर मारकर गिरिराज की राह अपनाकर, दादा के पास पहुंच जाना है। ' विराट तीसरे दिन की मध्यरात्रि में उठा, वह सरदार के वेश हुबहु से सज्ज होकर द्वार की ओर आगे बढ़ा। उसने महामंत्र का स्मरण कर दरवाजे को ठोकर दी। ठोकर पड़ने के साथ ही पल्ली का द्वार खुल गया। विराट जब बाहर निकला, तब पल्ली के द्वारपाल विराट को सलाम कर रहे थे। जब महामंत्र रक्षक बनता है, तब कितनी भी कठिन योजना पूरी हो जाती है। सरदार के वेश में बाहर निकले हुए विराट की योजना भी क्षेम कुशलता से पूरी हो गई। विराट बाहर निकल गया! द्वारपालों को शंका भी नहीं हुई। वह भी विराट को सरदार समझकर उसकी राह में पत्थर नहीं बने। 99
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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