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________________ -जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? और विराट भक्तिभरे हदय से उसके कंकर-कंकर के प्रति श्रद्धानवत हो जाता था। उसका हदय तीर्थाधिराज की सिढ़ियां चढ़कर भगवान आदिनाथ के रमणीय रंगमण्डप में पहुंच जाता और झुक जाता, दादा की अशरण-शरण चरण में!!! बस, इस प्रकार ट्रेन आगे बढ़ रही थी और विराट की यह रंगीन स्वप्नों की हारमाला भी आगे बढ़ती जा रही थी। एक के बाद एक स्टेशन को छोड़कर आगे बढ़ती ट्रेन सोनगढ़ स्टेशन पर खड़ी रही। विराट जिस डिब्बे में बैठा था, उस डिब्बे में से एक जनसमूह नीचे उतरा और एक अज्ञात दिशा की ओर बढ़ने लगा। उस समूह के पीछे विराट भी ट्रेन से नीचे उतरा। आसपास नजर घुमाई और उसकी आंखों के आगे 'सोनगढ' का बोर्ड खड़ा था। विराट आश्चर्य सहित सोचने लगा, मैं डिब्बे में से क्यों नीचे उतरा? मेरी मंजिल तो शत्रुजय है! और वह डिब्बे में बैठने हेतु वापिस मुड़ा, किन्तु यह क्या! उसके कदम मानो इस डिब्बे की ओर वापिस जाने को सर्वथा मना कर रहे थे और वह समूह जिस दिशा की ओर गया, वहां जाने के लिए तरसने लगे। विराट ने अपने कदम ट्रेन की ओर वापिस | मोड़ने की भारी कोशिस की। उस अज्ञात दिशा की ओर जाने को चाहते हुए कदमों को शत्रुजय की राह की ओर मोड़ने के लिए विराट ने बहुत प्रयास किया, किन्तु वे कदम नहीं माने! वह दिल वापिस नहीं मुड़ा! और विराट ने महामंत्र नमस्कार का स्मरण किया, अलबेले आदिनाथ को याद किया और वह समूह जिस दिशा की ओर जा रहा था, उस ओर अपनी दौड़ शुरू की। विराट का मन भी आश्चर्य अनुभव कर रहा था कि, शत्रुजय को भेंटकर मृत्युंजय बनने के लिए निकला हुआ में इस प्रकार अज्ञात दिशा की ओर क्यों जा रहा हूँ, मुझे कोई अजीब आकर्षण इस समूह की ओर खींच रहा है। क्या मेरी सोची हुई यह शत्रुजय की सुहावनी स्वप्न-सृष्टि साकार हुए बिना ही इस प्रकार बिखर जायेगी? विराट ने आगे दृष्टि
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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