SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आमुख निसीहज्झयणं २.प्रेरणा या उत्पीड़न-गृहस्थ के निमंत्रण पर साधु कहता है-अनुग्रह करूं तो तू मुझे क्या देगा? गृहस्थ कहता है जो आपको चाहिए, वही दूंगा। साधु पुनः पूछता है-घर जाने पर देगा या नहीं? गृहस्थ कहता है-दूंगा। ३. परिमाण-साधु पुनः पूछता है-तू कितना देगा? कितने समय तक देगा। ये तीनों विकल्प अकल्पनीय हैं। ४. स्वाभाविक-गृहस्थ के अपने लिए बने हुए सहज भोजन को साधु सहज भाव से लेने के लिए चला जाए। इस सम्पूर्ण प्रकरण को पढ़ने से पाठक को तत्कालीन समाज एवं सामाजिक परिस्थितियों का भी अच्छा ज्ञान उपलब्ध हो सकता है। आयारचूला में अन्यतीर्थिक एवं गृहस्थ के साथ भिक्षाचर्या हेतु गमनागमन, स्वाध्यायभूमि एवं विचारभूमि में गमन तथा ग्रामानुग्राम परिव्रजन का निषेध किया गया है। प्रस्तुत उद्देशक में उसका प्रायश्चित्त बतलाया गया है। मनोज्ञ-मनोज्ञ आहार एवं मनोज्ञ-मनोज्ञ पानक को खाने-पीने वाला, अमनोज्ञ-अमनोज्ञ आहार-पानक का परिष्ठापन करने वाला मायिस्थान का स्पर्श करता है अतः प्रस्तुत उद्देशक में उनके भी प्रायश्चित्त का प्रज्ञापन हुआ है। १. निभा. गा. १०००-१००२ २. आचू. १/८-१०
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy