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________________ उद्देशक २० : सूत्र ४५-४८ ४५८ निसीहज्झयणं पक्खियावीसतिराइयारोवणा-पदं ४५. दोमासियं परिहारहाणं पट्ठविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा पक्खिया आरोवणा आदी मज्ञवसाणे सअटुं सहेउं सकारणं अहीणमतिरित्तं, तेण परं अड्राइज्जा मासा॥ पाक्षिकी-विंशतिरात्रिक्यारोपणा-पदम् पाक्षिकी-विंशतिरात्रिकी-आरोपणा-पद द्वैमासिकं परिहारस्थानं प्रस्थापितः ४५. द्वै अनगारः अन्तरा मासिकं परिहारस्थानं अनगार यदि प्रायश्चित्त के मध्य मासिक प्रतिसेव्य आलोचयेत् अथापरा पाक्षिकी परिहारस्थान की प्रतिसेवना कर आलोचना आरोपणा आदिमध्यावसाने सार्थं सहेतु करता है, उसे उस काल के आदि, मध्य सकारणम् अहीनातिरिक्तम्, तस्मात् अथवा अवसान में अर्थसहित, हेतुसहित, परम् अर्धतृतीयाः मासाः। कारणसहित पाक्षिकी आरोपणा दी जाए। न्यून-अधिक आरोपणा न दी जाए। जिसे संयुक्त करने पर अढ़ाई मास की प्रस्थापना होती है। ४६. अड्डाइज्जमासियं परिहारट्ठाणं __ अर्धतृतीयमासिकं परिहारस्थानं पट्टविए अणगारे अंतरा दोमासियं प्रस्थापितः अनगारः अन्तरा द्वैमासिकं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा परिहारस्थानं प्रतिसेव्य आलोचयेत् अहावरा वीसतिराया आरोवणा आदी अथापरा विंशतिरात्रिकी आरोपणा मज्ञवसाणे सअटुं सहेउं सकारणं __ आदिमध्यावसाने सार्थं सहेतु सकारणम् अहीणमतिरित्तं, तेण परंसपंचरातिया अहीनातिरिक्तम्, तस्मात् परं तिण्णि मासा॥ सपञ्चरात्रिकाः त्रयः मासाः। ४६. अर्द्धतृतीयमासिक (अढ़ाई मास के) परिहारस्थान में प्रस्थापित अनगार यदि प्रायश्चित्त के मध्य द्वैमासिक परिहारस्थान की प्रतिसेवना कर आलोचना करता है, उसे उस काल के आदि, मध्य अथवा अवसान में अर्थसहित, हेतुसहित, कारणसहित बीसरात्रिकी आरोपणा दी जाए। न्यूनअधिक आरोपणा न दी जाए। जिसे संयुक्त करने पर तीन मास पांच रात की प्रस्थापना होती है। ४७. सपंचरायतेमासियं परिहारट्ठाणं सपंचरात्रत्रैमासिकं परिहारस्थानं पट्टविए अणगारे अंतरा मासियं प्रस्थापितः अनगारः अन्तरा मासिकं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा परिहारस्थानं प्रतिसेव्य आलोचयेत् अहावरा पक्खिया आरोवणा आदी अथापरा पाक्षिकी आरोपणा मज्ञवसाणे सअटुं सहेउं सकारणं आदिमध्यावसाने सार्थं सहेतु सकारणम् अहीणमतिरित्तं, तेण परं अहीनातिरिक्तम, तस्मात् परं सवीसतिराया तिणि मासा॥ सविंशतिरात्राः त्रयः मासाः। ४७. सपंचरात्र-त्रैमासिक परिहारस्थान में प्रस्थापित अनगार यदि प्रायश्चित्त के मध्य मासिक परिहारस्थान की प्रतिसेवना कर आलोचना करता है, उसे उस काल के आदि, मध्य अथवा अवसान में अर्थसहित, हेतुसहित, कारणसहित पाक्षिकी आरोपणा दी जाए। न्यून-अधिक आरोपणा न दी जाए। जिसे संयुक्त करने पर तीन मास बीस रात की प्रस्थापना होती है। ४८. सवीसतिरायतेमासियं परिहारहाणं सविंशतिरात्रत्रैमासिकं परिहारस्थानं पट्ठविए अणगारे अंतरा दोमासियं प्रस्थापितः अनगारः अन्तरा द्वैमासिकं परिहारहाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा परिहारस्थानं प्रतिसेव्य आलोचयेत् अहावरा वीसतिरातिया आरोवणा अथापरा विंशतिरात्रिकी आरोपणा आदी मज्झेवसाणे सअटुं सहेडं आदिमध्यावसाने सार्थं सहेतु सकारणम् सकारणं अहीणमतिरित्तं, तेण परं अहीनातिरिक्तम्, तस्मात् परं सदसराया चत्तारि मासा॥ सदशरात्राः चत्वारः मासाः। ४८. सविंशतिरात्र-त्रैमासिक परिहारस्थान में प्रस्थापित अनगार यदि प्रायश्चित्त के मध्य द्वैमासिक परिहारस्थान की प्रतिसेवना कर आलोचना करता है उसे उस काल के आदि, मध्य अथवा अवसान में अर्थसहित, हेतुसहित, कारणसहित पाक्षिकी आरोपणा दी जाए। न्यून-अधिक आरोपणा
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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